वामदेव n. एक सुविख्यात वैदिक सूक्तद्रष्टा (वामदेव गौतम देखिये) ।
वामदेव (गोतम) n. एक आचार्य एवं वैदिक सूक्तद्रष्टा, जिसे अपनी माता के गर्भ में ही आत्मानुभूति प्राप्त हुई थी । ऋग्वेद के प्रायः समग्र चौथे मंडल का यह प्रणयिता कहा जाता है । इस मंडल के केवल ४२-४४ सूक्तों का प्रणयन त्रसदस्यु, पुरुमीह्ळ एवं अजमीह्ळ के द्वारा किया गया है; बाकी सारे सूक्त वामदेव के द्वारा प्रणीत ही है । किन्तु इस मण्डल में केवल एक ही स्थान पर इसका प्रत्यक्ष निर्देश प्राप्त है
[ऋ. ४.१६.१८] । अन्य वैदिक ग्रंथों में भी इसे ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल का प्रणयिता कहा गया है
[का. सं. १०.५] ;
[मै सं. २.१.१३] ;
[ऐ.आ. २.२.१] ।
वामदेव (गोतम) n. वैदिक ग्रंथ में इसे सर्वत्र गोतम ऋषि का पुत्र कहा गया है
[ऋ. ४.४.११] । इसी कारण यह स्वयं को ‘गोतम’ कहलाता था । इसके जन्म के संबंधी अस्पष्ट विवरण वैदिक साहित्य में प्राप्त है
[ऋ. ४.१८, २६.१] ;
[ऐ. आ. २.५] । अपने जन्म के संबंधी ज्ञान इसे माता के गर्भ में ही प्राप्त हुआ था । तब इसने सोचा कि, अन्य लोगों के समान मेरा जन्म न हो। इसी कारण इसने इपनी माता का उदर विदीर्ण कर बाहर आने का निश्र्चय किया । इसकी माता को यह बात ज्ञात होते ही, उसने अदिति का ध्यान किया। उस समय इंद्र के साथ अदिति वहॉं उपस्थित हुई, जहॉं गर्भ से ही इसने इंद्र के साथ तत्त्वज्ञान के संबंधी चर्चा की
[ऋ. ४.१८] ; वेदार्थदीपिका । ऋग्वेद में अन्यत्र वर्णन है कि, योगसामर्थ्य से श्येन पक्षी का रूप धारण कर, यह अपनी माता के उदर से बाहर आया
[ऋ. ४.२७.१] । ऐतरेय उपनिषद के अनुसार, इसके जन्म के पूर्व इसे अनेकानेक लोह के कारगार में बंद करने का प्रयत्न किया गया, जिन्हे तोड़ कर यह श्येन पक्षी की भॉंति पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ
[ऐ उ. ४.५] । वामदेव के जन्म के संबंधी सारी कथाएँ रुपात्मक प्रतीत होती है, जहॉं गर्भवास को कारागृह कहां गया है ।
वामदेव (गोतम) n. ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के अधिकांश सूक्तों में सुदास, दिवोदास, सृंजय, अतिथिग्व, कुत्स आदि राजाओं कां निर्देश प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, इसका इन राजाओं से घनिष्ठ संबंध था । बृहद्देवता में इंद्र एवं वामदेव के संबंध में कई असंगत कथाओं का निर्देश प्राप्त है, जिनका सही अर्थ समझ में नही आता है । एक बार जब यह कुत्ते की अँतडियॉं पका रहा था, तो इंद्र एक श्येनपक्षी के रुप में इसके सम्मुख प्रकट हुआ था
[बृहद्दे. ४.१.२६] । इसी ग्रंथ में प्राप्त अन्य कथा के अनुसार, इसने इंद्र को परास्त कर अन्य ऋषियों को उसका विक्रय किया था
[बृहद्दे. ४.१३१] । सीग ने बृहद्देवता में प्राप्त इन कथाओं को ऋग्वेद में प्राप्त इसकी जन्मकथाओं से मिलाने का प्रयत्न किया है
[सीग, सा. ऋ. ७६] ।
वामदेव (गोतम) n. पुनर्जन्म के संबंध में विचार करनेवाले तत्वज्ञों में वामदेव सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । मनु एवं सूर्य नामक अपने दो पूर्वजन्म इसे ज्ञात हुए थे, एवं माता के गर्भ में स्थित अवस्था में ही इसे सारे देवों के भी पूर्वजन्म ज्ञात हुए थे । पुनर्जन्म के संबंधी वामदेव का तत्त्वज्ञान ‘जन्मत्रयी’ नाम से सुविख्यात है, जिसके अनुसार हर एक मनुष्य के तीन जन्म होते हैः---पहला जन्म, जब पिता के शुक्र जंतु का माता के शोणित द्रव्य से संगम होता है; दुसरा जन्म, जब माता की योनि से बालक का जन्म होता है; तीसरा जन्म जब मृत्यु के बाद मनुष्य को नया जन्म प्राप्त होता है । अमरत्व प्राप्त करने की इच्छा करनेवाले साधकों के लिए, वामदेव का यह तत्त्वज्ञान प्रमाणभूत माना जाता है ।
वामदेव (गोतम) n. आत्मानुभूति प्राप्त होने पर इसने कहा था, ‘मैंने ही सूर्य को प्रकाश प्रदान किया था, मनु मेरा ही रूप था’ (अहं मनुरभवं सूर्यश्र्चाहम्)
[ऋ.४.२६.१] ;
[बृ. उ. १.४.१०] । वामदेव का यह आत्मकथन मराठी संत तुकाराम के आत्मकथन से मिलता-जुलता प्रतीत होता है, जहाँ उन्होंने अपना पूर्वजन्म शुक्रमुनि के रूप में बताया था
[डॉ. रानडे, उपनिषद्रहस्य पृ. ३१२] ।
वामदेव II. n. एक ऋषि, जो अंगिरस् एवं सुरूपां के पुत्रों में से एक था
[ब्रह्मांड. ३.१] । मत्स्य में इसकी माता का नाम स्वराज दिया गया है । यह अंगिराकुल का गोत्रकार, मंत्रकार एवं ऋषि था । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यह उपस्थित था । स्यमंतपंचक क्षेत्र में यह श्रीकृष्ण से मिलने आया था
[भा. १०.८४.५] । इसके द्वारा दिये गये भस्म से एक ब्रह्मराक्षस का उद्धार हुआ था
[स्कं द. ३.३.१५-१६] । रथन्तरकल्प में, मेरु पर्वत के कुमारशिखर पर इसका स्कंद से संवाद हुआ था
[शिव. कै. २२] । इसने बकुलसंगमतीर्थ पर तपस्या की थी
[पद्म. उ. १३८] । मनुस्मृति में इसकी एक कथा प्राप्त है, जिसके अनुसार एक बार इसके क्षुधार्थ होने के कारण, कुत्ते का माँस खाने की इच्छा प्रकट की थी । किन्तु यह पापकर्म आपद्धर्म किये जाने के कारण, इसे कुछ दोष न लगा
[मनु. १०.१०६] ।
वामदेव III. n. एक ऋषि, जो अथर्वन् अंगिरस् का पुत्र था । इसके पुत्रों के नाम असिज एवं बृहदुक्थ थे
[वायु. ६५.१००] । यह तपस्यामग्न परशुराम से मिलने गया था
[ब्रह्मांड. ३.१.१०५] ।
वामदेव IV. n. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो कुशद्वीप के हिरण्यरेतस् राजा का पुत्र था
[भा. ५.२०.१४] ।
वामदेव IX. n. राम दशरथि के सभा का एक ऋषि।
वामदेव V. n. मोदापूर देश का एक राजा, जिसे अर्जुन ने अपने उत्तरदिग्विजय के समय जीता था
[म. स. २४.१०] । इसका शल राजा से झगड़ा हुआ था (शल. ३. देखिये) ।
वामदेव VI. n. एकादश रुद्रों में से एक ।
वामदेव VII. n. गुवाहासिन् नामक शिवावतार का एक शिष्य।
वामदेव VIII. n. एक त्रिशुलधारी शिवावतार, जो मनु एवं शतरुपा के सात पुत्रों में से एक था । इसके मुख, हाथ, जंघा एवं पावों से क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्रों की उत्पत्ति हुई
[मत्स्य. ४.२७.३०] । आगे चल कर इसका सृष्टि के उत्पत्ति का कार्य ब्रह्मा के द्वारा स्थगित किया गया, जिस कारण इसे ‘स्थाणु’ नाम प्राप्त हुआ
[मत्स्य. ४.३१] । शिव के इस अवतार को पाँच मुख थे । बृहस्पति-पत्नी तारा का हरण सों के द्वारा किये जाने पर, इसने सों से युद्ध किया था
[मत्स्य. २३.३६] । इसने पार्वती को ‘शिवसहस्त्र’ नाम का पाठ सिखाया था
[पद्म. भू. २५४] ।