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पंचाल

   
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पंचाल     

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See : पांचाल

पंचाल     

पंचाल n.  शतपथ ब्राह्मण कालीन एक लोकसमूह [शं.ब्रा.१३.५.४.७] ;[जै. ब्रा.३.२९.१] । ऋग्वेदकाल में यही लोग ‘क्रिवि’ नाम से, एवं महाभारतकाल में ये लोग ‘पांचाल नाम से प्रसिद्ध थे [म.आ.५५.२१] ;पांचाल देखिये । पंचाल लोगो का निर्देश प्रायः कुरु लोगों के साथ आता है । कुरु पंचालों के राजाओं का निर्देश ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में प्राप्त है [ऐ. ब्रा.८.१४] । उनमें से क्रैव्य, दुर्मुख प्रवाहण जैवलि, एवं शोन ये पंचाल राजा प्रधान एवं महत्त्वपूर्ण है । केशिन् दाल्भ्य नामक और एक पंचाल राजा का निर्देश ‘काठक संहिता’ में प्राप्त है [का.सं.३.२] । इन लोगों के नगरों में, ‘परिचर्का,’ ‘कांपील,’ ‘कौशांबी’ ये प्रमुख थे [श. ब्रा.१३.५.४.७] । पंचाल लोगों के अंतर्ग्त ‘क्रिवियों’ के अतिरिक्त अन्य जातियॉं भी सम्मीलित थी । ‘पंचाल’ नाम से पॉंच जातियों का संदर्भ प्रतीत होता हैं । ऋग्वेद में निर्देशित पॉंच जातियॉं (‘पंचजन’) एवं ‘पंचाल’ एक ही थे, ऐसा कई अभ्यासकों का कहना है (पंचजन देखिये) । पंचाल देश के ब्राह्मण दार्शनिक एवं भाषाशास्त्रीय वादविवादों में प्रवीण रहते थे [बृ.उ.६.१.१] ;[छां.उ.५.३१] । महाभारतकल में पंचाल देश का उत्तर एवं दक्षिण के रुप में विभाजन किया गया था । किंतु वैदिक साहित्य में उस विभाजन का कुछ उल्लेख नहीं मिलता ।
पंचाल II. n.  (सो. नील.) भद्राश्व (भर्म्याश्व) राजा के पॉंच पुत्रों के लिये प्रयुक्त सामूहिक नाम । ‘पंच अलगों’ (पॉंच पराक्रमी) के अर्थ से यह नाम भद्राश्व के पुत्रों के लिये प्रयुक्त किया जाता था । उन्ही के नाम से, उनके राज्य कों ‘पंचाल’ नाम प्राप्त हुआ [पार्गि. ७५]

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