केशिन् n. कश्यप एवं दनु का पुत्र
[ह.वं. १.२.८६] । इसने प्रजापति की देवसेना एवं दैत्यसेना नामक दो प्रसिद्ध कन्याओं का हरण किया । दैत्यसेना इसके वश में हुई । परंतु देवसेना आक्रोश करने लगी तथा ‘कोई तो भी छुडावो’ कह कर चिल्लाने लगी । इसी समय देवसेन का आधिपत्य जो स्वीकार कर लेगा, ऐसा सेनापति ढूँढने के लिये इन्द्र मानसपर्वत पर आया । उसने केशी से युद्ध कर के देवसेना को बचाया
[म.आर. ११३.८-१५] । कुछ दिनों के बाद, इसने चित्रलेखा तथा उर्वशी आदि अप्सराओं को भगा लिया । यह पुरुरवा (बुधपुत्र) ने देखा । उसने इस दानव से युद्ध कर, इन दोनों को छुडाया
[मत्स्य. २४.२३.] ;
[पद्म. सृष्टि १२.७६] ।
केशिन् (दार्भ्य) , केशिन् (दाल्भ्य) n. एक राजा सामद्रष्टा
[पं. ब्रा.१३.१०.८] । उच्चैःश्रवस कौपपेय की बहन का पुत्र
[जै.उ.ब्रा.३.२९.१] । पांचाल इसके प्रजाजन थे, इसलिये केशिन् इसकी एक शाखा रही होगी
[क.सं.३०.२] ;
[बौ. श्रौ. २०.२५] । धार्मिक विधि के बारे में, इसका खंडिक से एकमत नहीं होता था
[मै. सं. १.४.१२] ;
[श. ब्रा.११.८.४.१] । दीक्षा का महत्त्व इसे सुवर्ण पक्षी ने सिखाया
[सां. ब्रा.७.४] ; केशिन् सात्यकमि देखिये । उच्चैःश्रवस् कौपयेय मरने पर केशिन् दार्भ्य के कारण, वन में भटकने लगा । उस समय उच्चैःश्रवस् इस धूम्ररुप में मिला । इसके पूछने पर, मृत्यु के बाद धूम्रशरीर उसे कैसे प्राप्त हुआ यह बताया । यह उससे प्रेम से गले मिलने लगा किन्तु वह हाथ में नहीं आया
[जै. उ.ब्रा. ३.२९-३०] ।
केशिन् (सत्यकामि) n. एक आचार्य । इसने केशिन् दार्भ्य को सप्तपदी शाक्करी मंत्र की विशेष जानकारी दी
[तै.सं २.६.२.३] ;
[मै.सं.१.६.५] ।
केशिन् II. n. वसुदेव को कौशल्या से उत्पन्न पुत्र ।
केशिन् III. n. कंस ने कृष्ण वध के लिये केशी नामक दैत्य भेजा था । इसने अश्वरुप धारण कर कृष्ण पर आक्रमण किया । परंतु अश्व ने खाने के लिये फैलाये मुख में हाथ डालकर, कृष्णने इसक वध किया
[भा.१०.३७.२६] ;
[म.स.परि.४, क्र.२१ पंक्ति. ८४३-८४४] । यह ऋष्यमूक पर्वत पर रहता था
[गर्ग सं.१.६] ।