माधवी n. नहुषकुलोत्पन्न राज ययाति की कन्या
[म.उ.११३.४५५] । यह अल्पायु थी । एक ब्रह्मनिष्ठ ने इसे वरदान दिया था कि, यह चाहे जितने बार पुत्र उत्पन्न करे, लेकिन इसका यौवन सदैव एक सा रहेंगा एवं पुत्र उत्पन्न कर के भी यह चिरकुमारी रहेगी ।
माधवी n. एक बार गुरुदक्षिणा में सहायता प्राप्त करने के लिए गालव ऋषि ययाति के पास आया । उस समय गालव ऋषि का सारा पैसा पुण्यकार्य में खर्च हो गया था, किंतु उसे अपने गुरु विश्वामित्र को दक्षिणा कही न कही से देनी ही थी । ययाति के पास धन की कमी न थी, किंतु गालव ऋषि को देने के लिए उसके पास वैसें आठ सौ अश्व न थे, जिसे कि गालव ऋषि ने विश्वामित्र के लिये ययाति से मॉंगे थे । अतएव उसने अपनी पुत्रे गालव को दे कर कहा, ‘तुम मेरी पुत्री को ले सकते हो, दूसरे राजा को इसे दे कर तुम उससे धन ही नहीं, बल्कि राज्य भी प्राप्त कर सकते हो
[म.उ.११४] ।
माधवी n. यह कन्या अत्यन्त सुंदर तथा सुलक्षणी थी, अतएव इसे ले कर गालव ऋषि इक्ष्वाकुकुलोत्पन्न राजा हर्यश्व के पास गया । गर्यश्व ने पुत्र प्राप्त के लिए अनेकानेक प्रयत्न किये थे, फिर भी वह निःसंतान था । वह माधवी को देखते ही उस पर मोहित हो गया, किंतु गालव ऋषि की मॉंग के अनुसार, उसके पास आठ सौ अश्व न थे, जो एक कान से कृष्ण तथा चन्द्रप्रभायुक्त हों । इसलिए उसने गालव ऋषि के सामने शर्त रक्खी, ‘इस समय मुझसे केवल दो सौ अश्व ले ले, जो मेरे पास है, तथा मुझे माधवी दे दो । जब मुझे माधवी से पुत्र प्राप्त हो जायेगा, तो मैं उसे तुम्हे वापस कर दूँगा’। ऐसा कह कर, गालव ऋषि की आज्ञा से राजा हर्यश्व ने माधवी को अपने पास रख लिया । गालव ऋषि का कार्य पूर्ण करने के उद्देश्य से माधवी ने हर्यश्व से सारी वस्तुस्थिति बताकर कहा, ‘मुझे अभीचार राजाओं को और दिया जायेगा’ । कालान्तर में इसने अपने गर्भ से वसुमत् (वसुमनस्) नामक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर अयोध्या का राजा हुआ
[म.उ.११४.१७] । काल अवधि समाप्त होते ही, गालव ऋषि इसे राजा हर्यश्व से ले गया, एवं यह भी राजवैभव के मोह से ऊब कर सहर्ष उसके साथ चलने को तैयार हो गयी । प्राप्त हुए वर के अनुसार, यह पुनः कुमारी बन गयी ।
माधवी n. बाद में गालव माधवी को लेकर काशिराज दिवोदास राजा के पास गया । दिवोदास ने गालव को उसी प्रकार के दो सौ अश्व दिये, तथा हर्यश्व राजा के समान करार कर के, पुत्रोत्पन्न करने के लिए माधवी को अपने पास रख दिया । कालान्तर में माधवी से दिवोदास को ‘प्रतर्दन’ नामक पुत्र हुआ
[म.उ.११५.१५] । करार की अवधि समाप्त होते ही, गालव ऋषि दिवोदास के पास आया, तथा माधवी को वापस ले गया ।
माधवी n. अन्त में गुरुदक्षिणा की पूर्ति के लिए, गालव इस भोज नगरी कें उशीनर राजा के पास ले गया । उपरलिखित प्रकार से करार कर के, गालव ने उशीनर से भी दो सौ अश्व प्राप्त किये, एवं पुत्र होने की अवधि तक के लिए माधवी को राजा के पास छोड दिया । कालान्तर में उशीनर रजा को माधवी से ‘शिबि’ नामक पुत्र हुआ
[म.उ.११६.२०] । करार की अवधिक समाप्त होने के बाद, जब गालव माधवी को उशीनर से ले कर जा रहा था, तब मार्ग में उसे गरुड मिला । उसने इसे बताया, ‘उसके बाद आपको और ऐसे अश्व मिलना असम्भव है । इसलिए जो छः सौ अश्व मिले है, उन्हें लेकर आप अपने गुरु विश्वामित्र को दे दें, तथा शेष दो सौ अश्वों के स्थान पर, माधवी को ही उसे प्रदान करे’।
माधवी n. गालव को यह चीज पसन्द आयी, और उन्होंने ऐसा ही किया । विश्वामित्र ने भी गालव की यह प्रार्थना मान ली । कालान्तर में विश्वामित्र को माधवी से अष्टक नामक पुत्र हुआ
[म.उ.११७.१८] । अष्टक के जन्मोपरान्त, माधवी को गालव के हाथ सौंप कर विश्वामित्र तप के लिए चले गया ।
माधवी n. विश्वामित्र को गुरुदक्षिणा देने में गालव सफल रहा, अतएव वह बडा प्रसन्न था । जिस कन्या के कारण, उसका यह संकट दूर हुआ, उस माधवी को ययाति राजा के यहॉं पहुँचाकर, गालव भी तपश्चर्या के लिए वन में चला गया ।
माधवी n. राजा ययाति ने माधवी का स्वयंवर निश्चित करके, इस रथ बिठा कर सारे देश में घुमाया । किन्तु इसने किसी राजपुत्र को पसन्द न करके, वन में रहकर तपस्या करना स्वीकार किया ।
माधवी n. इस तरह माधवी को कुल चार पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम निम्नप्रकार थेः---१. वसुमनस् (वसुमत्), जो इसे हर्यश्व राजा से उत्पन्न हुआ था
[म.उ.११४.१७] ; २. प्रतर्दन, जो इसे दिवोदास राजा से उत्पन्न हुआ था
[म.उ.११५.१५] ; ३. शिबि, जो इसे उशीनर राजा से उत्पन्न हुआ था
[म.उ.११६.२२०] ; ४. अष्टक, जो इसे विश्वामित्र ऋषि से उत्पन्न हुआ था ।
[म.उ.११७.१८] ।
माधवी n. आगे चल कर, इसका पिता ययाति अपने इहलोक के पुण्यकर्मों के कारण स्वर्ग को प्राप्त हुआ । किन्तु वहॉं ययाति ने देव, ऋषि एवं ब्राह्मणों का, अवमान किया, जिस पाप के कारण, देवों ने उसे स्वर्ग से भ्रष्ट कराया । फिर उसने देवों की प्रार्थना की, ‘मेरे पापनाशनार्थ मुझे सुजनसंगति का लाभ मिले, जिस कारण मैं स्वर्ग को पुनः प्राप्त कर सकूं’। देवों ने ययाति की इस प्रार्थना सुन ली, एवं उसके पौत्र एवं माधवी के पुत्र वसुमनस्, प्रतर्दन, शिबि एवं अष्टक जहॉं यज्ञ कर रहे थे, उसी नैमिषारण्य में उन्हों ने ययाति को ढकेल दिया । माधवी के चारो पुत्रों ने स्वर्ग से भ्रष्ट हुए अपने मातामह का अत्यंत आदरभाव से स्वागत किया, एवं अपने यज्ञों का एवं धर्माचरण का सारा पुण्य स्वीकारण की प्रार्थना उसे की ।
माधवी n. इतने में माधवी वहॉं प्रविष्ट हुयी, एवं पुत्र एवं पौत्रों के पुण्य का स्वीकार करने का सर्वप्रथम अधिकार पिता एवं पितामह को ही है, ऐसी धर्माज्ञा इसने ययाति के बतायी । फिर अपने चारों पुत्रों के यज्ञकर्म का पुण्य स्वीकारने की, एवं उसके बल से स्वर्ग में पुनः प्रविष्ट होने के इसने उसे प्रार्थना की । इस प्रकार माधवे ने गालव ऋषि को संकट मुक्त कराया, एवं अपने पुत्रों के पुण्य का दान, स्वर्ग से च्युत अपने पिता को कर उसे स्वर्गप्राप्ति कराया
[म.आ.८७] ;
[म.उ.१०४-११८] । अपनी कन्या के द्वारा ययाति का उद्धार होने की कथा मस्त्य में भी प्राप्त है । वहॉं वसुमनस्, प्रतर्दन, शिबि एवं अष्टक इन चारों का मातामह ययाति था, ऐसा निर्देश भी प्राप्त है । किन्तु मत्स्य में ययाति राजा के कथा में माधवी का निर्देश प्राप्त नहीं है
[मत्स्य.३५-४२] ।
माधवी n. उत्तम कन्या अपने कुल का, एवं पितरों का उद्धार करनेवाली होती है, इस तत्व का प्रतिपादन करने के लिए माधवी के एक कथा महाभारत में दी गयी है । इस कथा का प्रमुख उद्देश्य तत्त्वप्रतिपादन होने के कारण, उस में ऐतिहासिक दृष्टि से कालविपर्यास के अनेक दोष आये हैं । उस कथा में हर्यश्व, दिवोदास, उशीनर एवं विश्वामित्र समकलिन बताये गये है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से वास्तव नही है ।
माधवी II. n. रथध्वज राजा के पुत्र धर्मध्वज की पत्नी, जिसकी कन्या का नाम तुलसी था ।
माधवी III. n. पूरुपुत्र जनमेजय ‘प्रथम’ की पत्नी ।
माधवी IV. n. स्कंद की अनुचरी एक मातृका
[म.श.४५.७] ।