खेल गुमायो बालपनोमें तरुणपना रही सोय ॥ध्रु०॥
अब क्यौं मुख बतलावूं पियाकूं मैं बैठी जोबन खोय ॥ खेल०॥१॥
जब तनु बुढ्ढो भयोरे मैं वां बेठी वां खोय ॥ खेल०॥२॥
अब रूप रंग कछु रहेयो नही तनमें जीव कुसुंबो धोय ॥ खेल०॥३॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु फेर ऐसी चटक न होय ॥ खेल०॥४॥