चरका यंव यंव यंव बोले सुन बे गुजर बाली ॥ध्रु०॥
चरका तेरा रंगी बेरंगी पहने लाल गुलाल ।
कातनवाली छेल छबीली गुज गुज डाले ताल ॥१॥
समदीके घर समदी जावे बहन घर जो भाई ।
घरकूं आग लगाकर तट्या उन्ने देह जगाई ॥२॥
कहत कबीरा सुन भाई साधु ये पद है निरबानी ।
ये पदके कोई निंदा करे उनकूं नरक निशानी ॥३॥