जिनकी रेन अपार जगतमें सोही सतनाम प्यारा हो ॥ध्रु०॥
जैसी कमलनी रहे जलभीतर जलमें करत पसारा हो ।
उनकी पत नीर नहीं लागे ढकेल दिया जैसा पाराहो ॥ जिनकी०॥१॥
जैसा सतियां चढे सरनपर पियुक बचे न नहीं थारा हो ।
आपही जळगये कुटुंब उधारे ले चली दोकुल तेरा हो ॥ जिनकी०॥२॥
जैसा सूर चढे रन उपर जिने बांधा सकल हतियाराहो ।
उनको सुरत रहे लरनेकी प्रेम मदन ललकाराहो ॥ जिनकी०॥३॥
गायन गजिवन लढें जल भीतर ललत लघुत गजरा हो ।
जबलग सहो न रही डुबनेकी तब सतनाम पुकाराहो ॥ जिनकी०॥४॥
भवसागर एक नदिया बहेती लख चौर्यांशी धारा हो ।
कहत कबीर सुन भाई साधु हंसा उतर गये पाराहो ॥ जिनकी०॥५॥