साधो भाई घरकी कहियो नहीं माने परगट कहुं के नहीं छाने ॥ साधो भाई ॥ध्रु०॥
सुवत सबेरी उठत अबेरी वखत बेताल भुलावे ।
सनान करत ओ बालक पटके ऐसी कपट कैहलावे ॥ साधो०॥१॥
शौर करे और जुठियां मारे अवसर टुकना गाले ।
ऐसी बेढंग फिरत धिटाई मन माने वैसा चाले ॥२॥
मनछा मारी बहु बुध भारी सबद गुरुकी काठी ।
घरही घेरकर भीतर मित्र और चलत नाठी नाठी ॥३॥
निरगुन निंदाके मारी करत बले हा लोक बिच चासा ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो क्यौं जलवे घर खासा ॥४॥