भगवतभजन गुन गांऊगी रमतें रामकूं रिझाऊंगी ॥ध्रु०॥
बन बन जाऊं परत नही तोरूं ना मैं डाळ सताऊंगी ।
डाल डाल बिच साहेब मेरा चुरी चुरी सीस नमाऊंगी ॥१॥
जडी न राखूं बुट्टी न राखूं ना मैं बैद्य करावूंगी ।
सद्गुरु वैद्य मिले अविनाशी उनसे हात दिखाऊंगी ॥२॥
दरशनके ठारा दरशनकूं बांधू नैनके बान चढावूंगी ।
पांच मोहोर पचीस बसकर मुजसे मुजरे आवूंगी ॥३॥
पांच मुखी गंगाजल लेकर मान गुमान बाहुंगी ।
सब साधनके रतन बिल्लाके माथे चाप चढावूंगी ॥४॥
तीरथ जाऊं मैं जलमें न्हाऊं ना मैं जीव सताऊंगी ।
कहे कबीर सुन भाई साधु मनही तिलक लगाऊंगी ॥५॥