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७१२६ ते ७१४५

उत्तराधि पदें - ७१२६ ते ७१४५

तुकारामबाबा आणि त्यांचे शिष्य यांच्या अभंगांची गाथा.


॥७१२६॥

क्या गाऊं कोई सुननेवालों । देखें तों सब जन ही भुला ॥१॥
खेलों आपने रामहिसात । जैसी करहों मात ॥२॥
काहासे लाऊं मधुरा बानी । रीझ ऐसी लोक बिरानी ॥३॥
गिरिधर लाल तो भावका भुका । राग कला नहिं जानत तुका ॥४॥

॥७१२७॥
छोडे धन मंदिर बन बसाया । मांगत टुका घरघर खाया ॥१॥
तीनसों हम करवों सलाम । ज्यामुख बैठा राजाराम ॥२॥
तुलसीगला बभूत चर्‍हावे । हरजीके गुण निर्मल गावे ॥३॥
कहे तुका जो सांई हमारा । हिरनकश्यप उन्हें मारहि डारा ॥४॥

॥७१२८॥
मंत्रतंत्र नहिं मानत साखी । प्रेमभाव नहिं अंतर राखीं ॥१॥
राम कहे त्याके पग हूं लागूं । देखत कपट अभिमान दुर भागूं ॥२॥
अधिक याती कुलहीन नहिं जानूं । जाने नारायन सो प्रानी मानूं ॥३॥
कहे तुका जीव तन डारु वारी । राम उपासिहुं बलियारी ॥४॥

॥७१२९॥
हरिसूं मिल दे एकहि बेर । पाछें तूं फिर नावे घर ॥१॥
मात सुनो दुति आबे मनावन । जाया करति भर जोबन ॥२॥
हरिसुख मोहि कहिया न जाये । तब तूं बुझे आगो पाये ॥३॥
देखहि भाव कछु पकरी हात । मिलाई तुका प्रभुसात ॥४॥

॥७१३०॥
क्या कहूं नहिं बुझत लोका । लिजावे जम मारत धका ॥१॥
क्या जीवनेकी पकडी आस । हातों लिया नहिं तेरा घांस ॥२॥
किसे दिवाने कहता मेरा । कछु जावे तन तूं सबल्या नारा ॥३॥
कहे तुका तूं भया दिवाना । आपना विचार कर ले जना ॥४॥

॥७१३१॥
कब मरुं पाऊं चरन तुह्मारे । ठाकूर मेरे जीवन प्यारे ॥१॥
जग रडे ज्याकुं सो मोहि मीठा । मीठा दर आनंदमाहि पैठा ॥२॥
भला पाऊं जनम इन्हे बेर । बस मायाके असंग फेर ॥३॥
कहे तुका धन मानहि दारा । वोहि लिये गुंडलीया पसारा ॥४॥

॥७१३२॥
दासों पाछें दौरे राम । सोवे खडा आपें मुकाम ॥१॥
प्रेमसरडी बांधी गले । खैंच चले उधर चेले ॥२॥
आपने जनसुं भुल न देवे । कर हि धर आघें बाट बतावे ॥३॥
तुकाप्रभु दीनदयाला । यारि रे तुज परहूं गोपाला ॥४॥

॥७१३३॥
ऐसा कर घर आवे राम । और धंदा सब छोर हि काम ॥१॥
इतने गोते काहे खाता । जब तूं आपना भूल न होता ॥२॥
अंतरजामी जानत साचा । मनका एक उपर बाचा ॥३॥
तुकाप्रभु देसबिदेस । भरिया खाली नहिं लेस ॥४॥

॥७१३४॥
मेरे रामको नाम जो लेवे बारोंबार । त्याके पाउं मेरे तनकी पैजार ॥१॥
हांसत खेलत चालत बाट । खाना खाते सोते खाट ॥२॥
जातनसुं मुजे कछु नहि प्यार । असतेके नहिं हिंदु धेड चंभार ॥३॥
ज्याका चित लगा मेरे रामको नाम । कहे तुका मेरा चित लगा त्याके पाव ॥४॥

॥७१३५॥
आपें तरे त्याकी कोण बराई । औरनकुं भलो नाम घराई ॥१॥
काहे भूमि इतना भार राखे । दुभत धेनु नहिं दुध चाखे ॥२॥
बरसते मेघ फलतेहि बिरखा । कोन काम आपनी उन्होति रखा ॥३॥
काहे चंद्रा सुरज खावे फेरा । खिन एक बैठन पावत घेरा ॥४॥
काहे परिस कंचन करे धातु । नहिं मोल तुटत पावत घातु ॥५॥
कहे तुका उपकार हि काज । सब कररहिया रघुराज ॥६॥

॥७१३६॥
जग चले उस घाट कोन जाय । नहिं समजत फिर फिर गोते खाय ॥१॥
नहिं एक दो सकल संसार । जो बुझे सो आगला स्वार ॥२॥
उपर स्वार बैठे कृष्णापीठ । नहिं बाचे कोई जावे लूठ ॥३॥
देख हि डर फेर बैठा तुका । जोवत मारग राम हि एका ॥४॥

॥७१३७॥
भले रे भाई जिन्हें किया चीज । आछा नहिं मिलत बीज ॥१॥
फीरतफीरत पाया सारा । मीलत लोले धन किनारा ॥२॥
तीरथ बरत फिर पाया जोग । नहिं तलमल तुटत भवरोग ॥३॥
कहे तुका मैं तोकोदास । नहिं सिरभार चलावे पास ॥४॥

॥७१३८॥
लाल कमली वोढे पेनाये । मोसु हरिथें कैसें बनाये ॥१॥
कहे सखि तुह्में करिति सोर । हिरदा हरिका कठिन कठोर ॥२॥
नहिं क्रिया सरम कछु लाज । और सुनाउं बहुत हे भाज ॥३॥
और नामरुप नहिं गोवलिया । तुका प्रभु माखन खाया ॥४॥

॥७१३९॥
राम कहो जीवना फल सो ही । हरिभजनसुं विलंब न पाई ॥१॥
कवनका मंदर कवनकी झोपरी । एकरामविन सब हि फुकरी ॥२॥
कवनकी काया कवनकी माया । एकरामबिन सब हि जाया ॥३॥
कहे तुका सब हि चलनार । एकरामबिन नहिं वासार ॥४॥

॥७१४०॥
काहे भुला धनसंपत्तिघोर । रामनाम सुन गाउ हो बाप रे ॥१॥
राजे लोक सब कहें तूं आपना । जब काल नहिं पाया ठाना ॥२॥
माया मिथ्या मनका सब धंदा । तजो अभिमान भजो गोविंदा ॥३॥
राना रंक डोंगरकी राई । कहे तुका करे इलाहि ॥४॥

॥७१४१॥
काहे रोवे आगले मरना । गंव्हार तूं भुला आपना ॥१॥
केते मालुम नहिं पडे । नन्हे बडे गये सो ॥२॥
बाप भाई लेखा नहिं । पाछें तूं हि चलनार ॥३॥
काले बाल सिपत भये । खबर पकडो तुका कहे ॥४॥

॥७१४२॥
क्या मेरे राम कवन सुख सारा । कहकर दे पुछूं दास तुह्मारा ॥१॥
तनजोबनकी कोन बराई । ब्याधपीडादि स काटहि खाई ॥२॥
कीर्त बधाऊं तों नाम न मेरा । काहे झुटा पछताऊं घेरा ॥३॥
कहे तुका नहिं समजत मात । तुह्मारे शरन हे जोडत हात ॥४॥

॥७१४३॥
देखत आखों झुटा कोरा । तो काहे छोरा घरबार ॥१॥
मनसुं किया चाहिये पाख । ऊपर खाक पसारा ॥२॥
कामक्रोधसो संसार । वो सिरभार चलावे ॥३॥
कहे तुका वो संन्यास । छोटे आस तनकीहि ॥४॥

॥७१४४॥
रामभजन सब सार मिठाई । हरिसंताप जनमदुख राई ॥१॥
दुधभात घृत सकरपारे । हरते भुक नहिं अंततारे ॥२॥
खावते जुग सब चलिजावे । खटामिठा फिर पचतावे ॥३॥
कहे तुका रामरस जो पीवे । बहुही फेरा वो कबहु न खावे ॥४॥

॥७१४५॥
बारबार काहे मरत अभागी । बहुरी मरन संक्या तोरे भागी ॥१॥
ये हि तन करते क्या ना होय । भजन भगति करे वैकुंठे जाय ॥२॥
रामनाम मोल नहिं बेचे कबरि । वो हि सब माया छुरावत सगरी ॥३॥
कहे तुका मनसुं मिल राखो । रामरस जिव्हा नित चाखो ॥४॥

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Last Updated : June 10, 2019

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