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अध्याय ५ - ग्रन्थकर्तृप्रशस्तिः

मानसागरी - अध्याय ५ - ग्रन्थकर्तृप्रशस्तिः

सृष्टीचमत्काराची कारणे समजून घेण्याची जिज्ञासा तृप्त करण्यासाठी प्राचीन भारतातील बुद्धिमान ऋषीमुनी, महर्षींनी नानाविध शास्त्रे जगाला उपलब्ध करून दिली आहेत, त्यापैकीच एक ज्योतिषशास्त्र होय.

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गुर्जरदेशमें रहनेवाला, ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ, शांडिल्यगोत्रमें उत्पन्न, याजिक वंशको प्रकाश करनेवाला, ज्योतिर्विदोंमें अग्रय, श्रौतस्मार्तमें रत, जनार्दन नामकरके प्रसिद्ध तिसका पुत्र हरजी नामकने अपने गुणकरके योगिनीदशाचक्रोंको वर्णित स्फुटरीतिसे किया है ॥१॥

श्रीसंवत् १९६० फाल्गुनकृष्णपक्ष त्रयोदशी ( महाशिवरात्री ) रविवारमें मानसागरी पद्धति भाषाटीकासहित बालकोंके सुखपूर्वक बोधके अर्थ राजपंडित वंशीधरकरके पूर्णताको प्राप्त हुई ॥१॥२॥

इति मानसागरी पद्धतिः समाप्ता ।

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Last Updated : January 22, 2014

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