चन्द्रमहादशामें संपूर्ण विभूतिकरके युक्त, वाहन, छत्र, सवारी, क्षेम, प्रताप, बल वीर्य और सुख इन सबकी प्राप्ति, मिष्टान्न, पान, शयन, आसन, भोजन, धन, कांचन और भूमिलाभ इन सब सुखोंकरके युक्त होता है अर्थात् यह सब पदार्थ चन्द्रमाकी दशामें प्राप्त होते हैं ॥१॥
चन्द्रमाके अंतर्गत चन्द्रदशामें कन्या, पुत्र प्राप्ति, वस्त्र आभरणका लाभ, श्चशुर कुलसे लाभ और निद्रामें रति यह सब फल होता है ॥२॥
अब चन्द्रमाके अंतर्गत मंगलदशामें अग्निभय, पित्तविकारसे पीडा, अग्नि और चोरसे स्थानभ्रष्ट, अधिकारहानि यह फल होता है. रक्तवस्तु दान देय तौ कष्टशांति होवे ॥३॥
चन्द्रमामध्ये राहुदशामें रिपु, रोग और अग्निभय, उद्वेग, बंधुनाश, धनफा क्षय और कुछभी सुखप्राप्ति न होना यह फल होता है । कृष्णवस्तु दान देना कष्टशांति होवे ॥४॥
चन्द्रमामध्ये बृहस्पतिदशामें धर्म, अधर्म और सुखका प्राप्ति, वस्त्र अलंकार आदिका लाभ, जय, व्यापारसे अधिकलाभ और ईशानदिशामें यात्रा होय ॥५॥
चन्द्रमाके अंतर्गत शनिदशामें बंधुओंसे उद्वेग, शोक, भय, हानि, देवतादोषकरके शरीरमें कष्ट, पश्चिमदिशामें गमन तहाँ हानि यह सब फल होता है ॥६॥
चन्द्रमाके अंतर्गत बुधदशामें जहाँ जाय तहाँ लाभ, हाथी, घोडा, गोधन आदिके व्यापारसे लाभ और दक्षिणदिशाकी यात्रासे लाभ होता है ॥७॥
चन्द्रमाके अंतर्गत केतुदशामें चपलता, चित्तमें उद्वेग, हानि, भाइयोंगो कष्ट, धनका नाश, म्लेच्छजनसे भय, वातविकार यह फल होता है, कृष्णवस्तुका दान दे तो लाभ सुख होवै ॥८॥
चन्द्रमाके मध्यमें शुक्रदशामें बहुत स्त्रियोंके साथ भोग विलास, कन्याका जन्म, मुक्ताहार, मणि इनके व्यापारमें लाभ होता है ॥९॥
चन्द्रमाके अंतर्गत सूर्यदशामें संसारविषे मान्यता, यशकी प्राप्ति, सुख, व्याधिका नाश, धनका क्षय, ऐश्वर्य और अधिक सुख प्राप्त होता है ॥१०॥
इति चन्द्रदशान्तर्दशासमाप्ता ॥