सूर्यकी संध्यादशामें धनका आगम हो, पराक्रम राजसौख्य बहुत धर्म उद्यम हो, सौख्य हो, तीक्ष्णभूषादिसे सौख्य हो, विभवादि मानप्राप्ति हो । अधिक धन और अपने कुलमें अधिकारप्राप्ति हो, सुवर्ण, तांबा, घोडे रथादिककी प्राप्ति हो, शरीरमें आरोग्यता हो, विद्रुमरत्नका लाभ हो, कीर्ति हो और शत्रुका नाश हो यह फल उच्चादिस्थानोंमें सूर्यके रहते जानना । यदि सूर्य नीच शत्रुराशिका हो तौ अशुभ फल होता है । अर्थका नाश, पिताबंधु की हानि, हदय - नेत्रपीडा और पित्तरोग होता है ॥१-३॥