मंगलादिदशाओंमें अपने २ दशावर्षोंको दिनमानकरके मंगलाके ( सर्वदशाओंमें ) अंतरादिवसोंको क्रमसे गुणा करदे और ६ से भागले तौ लब्धि घटिकादि प्रत्यंतरदशा होगी ॥१॥
मंगलाके अंतर्गत मंगलादशा मित्र, पुत्र, स्त्री तथा शरीरके सुखको देनेवाली, अर्थ और मांगल्य देनेवाली होती है । मंगलाके अंतर्गत पिंगलादशामें अपने जनोंके साथ कलह मानसी उद्वेग और अनेक पीडा हो । मंगलाके अंतर्गत धन्यादशामें हाथी, घोडा, गोधनकी प्राप्ति, पुत्र, मित्र, सुख और अनेक प्रकारका विलास प्राप्त होता है । मंगलाके अंतर्गत भ्रामरीदशामें स्त्रीमित्रसे कलह, सदा विदेहवास, धनका नाश, राजासे कष्ट प्राप्त होता है । मंगलाके अंतर्गत भद्रिका दशामें धनधान्यका लाभ, पुत्र स्त्रीसे प्रीति तथा स्वजनोंसे प्रीति, प्रमोद और सुरभिज्ञता होती है । मंगलाके अंतर्गत उल्कादशामें धन, कीर्ति, सुत, उद्वेग, स्त्री, मित्र, पशुपीडा और राजासे हानि हो । मंगलाके अंतर्गत सिद्धादशामें स्त्री, धन, पुत्र इनकरके विलास और विविध सुख और बंधुमित्रका समागम होता है । मंगलाके अंतर्गत संकटादशामें जल, अग्नि, चौर तथा राजासे पीडा, कलहकी वृद्धि, मृत्युके समान कष्ट यह फल हो ॥२-९॥
पिंगलाके अंतर्गत पिंगला दशामें रोग, शोक, व्यसन, पीडा, मानसी उद्वेग, संताप, क्लेश और भ्रमण होता है । पिंगलाके अंतर्गत धन्यादशामें धन, अर्थ, भोग, विलास, पुत्र, काम और स्त्री सुख होता है । पिंगलाके अंतर्गत भ्रामरीदशामें घर ग्राम देशका तथा पुरलोकका त्याग, धनका नाश और अपने जनोंके साथ कलह होता है । पिंगलाके अंतर्गत भद्रिकादशामें कल्याण, स्थानान्तरसे कीर्ति प्राप्ति, पुत्रका लाभ और व्यापारसे धनका लाभ होता है । पिंगलाके अंतर्गत उल्कादशामें बांधवोंकें साथ विग्रह, राजा चौरसे भय और जनपीडा हो । पिंगलाके अंतर्गत सिद्धादशामें मंत्र यंत्रोंकी सिद्धि, धनधान्य लाभ और कास श्वास और प्रमेहका रोग होता है । पिंगलाके अंतर्गत संकटादशामें धनकी हानि, दुष्टव्याधि, विरोध तथा शत्रु राजभय होता है । पिंगलाके अंतर्गत मंगलादशामें विविध व्याधि, शोक, मोह, भय, पीडा इत्यादि अशुभफल होता है ॥१०-१७॥
इति पिंगलान्तरफलम् ॥
धन्यादशाके अंतर्गत धन्यादशामें भूमि, ग्राम, धन धान्यका लाभ, राजा स्वजन स्त्री पुत्रका सुख होता है । धन्याके अंतर्गत भ्रामरीदशामें भ्रमण, क्लेश, हानि, अन्यस्थानसे लाभ और अपने जनोंकरके विरोध होता है । धन्याके अंतर्गत भद्रिका दशामें सौभाग्य, मित्रसुख, लाभ, मंत्राधिकार, वाहन, अंबर भूमिका लाभ होता है । धन्याके अंतर्गत उल्कादशामें विविध कष्ट, उत्पात, हदय, कटिमें शूल आदि पीडा और धनका नाश होता है । धन्याके अंतर्गत सिद्धा दशामें सुत मित्र उत्सव और अनेक भोगविलास प्राप्त होते हैं । धन्याके अंतर्गत संकटादशामें बंधन, नीति, व्यापार, राजसम्मान और उत्साह लाभ होता है । धन्याके अंतर्गत पिंगलादशामें व्यवथा, भूमि, धनका लाभ, उत्साह, राजासे भय, शिरोरोग, शूलपीडा हो ॥१८-२४॥
भ्रामरीके अंतर्गत भ्रामरीदशामें भ्रांति, विषपीडा, अपने स्थानमें वा स्वजनोंमें शत्रु, दुष्टजन तथा जलसे भय, पीडा हो । भ्रामरीके अंतर्गत भद्रिकादशामें विदेशका गमन, मित्रका समागम, विद्यालाभ और राजसम्मान होता है । भ्रामरीके अंतर्गत उल्कादशामें ज्वर, शूलरोगसे पीडा, धन पुत्र स्त्री और देहकी पीडा और हानि होवै । भ्रामरीके अंतर्गत सिद्धादशामें कार्यसिद्धि, विवेक, विद्या, निधिका लाभ, भय, रोग और पीडाका नाश होवै । भ्रामरीके अंतर्गत संकटादशामें मरण, क्लेश, शोक, मोह, रोग, राजा तथा चोर जनोंमें ख्याति होवै । भ्रामरीके अंतर्गत मंगलादशामें विविध भोगविलास, सौख्य, राजसेवा, अधिक पुष्टि और मंगल होता है । भ्रामरीके अंतर्गत पिंगलादशामें गुदा, अंघ्रि, सुख इनमें रोग हो, हाथी घोडा भैंसा व्याघ्र व्रण इनकरके भय होता है । भ्रामरीके अंतर्गत धन्यादशामें धन वाहन भोगका लाभ राजासे प्राप्ति और भिल्लोंकरके शत्रुताकी हानि हो ॥२५-३२॥
भद्रिकाके अंतर्गत भद्रिकादशामें यश, कल्याणकी वृद्धि, व्यसन, पीडाका नाश और धर्ममार्गमें विघ्न होता है । भद्रिकाके अंतर्गत उल्कादशामें विवाद, रोग, स्थानका भ्रंश, द्रव्यकी हानि और उद्वेग होवै । भद्रिकाके अंतर्गत सिद्धादशामें देवता ब्राह्मणके पूजनमें रति, पुत्र, मित्र, कलत्र, अंग गृह, ग्रामसे उत्पन्न उत्सव होता है । भद्रिका अंतर्गत संकटादशामें संकट, पीडा, मोह, शोकादि व्यसन, भ्रांति, परदेशगमन और आत्तिं होवै । भद्रिकाके अंतर्गत मंगलादशामें सम्मान, धन, भूमि, कीर्तिका लाभ, व्यापारमें लाभ, सुत सौख्य और पितृवंशकी वृद्धि होवै । भद्रिकाके अंतर्गत पिंगलादशामें पित्तरोग, कृषि, वाणिज्यसे भूमि धनलाभ और वृद्धमनुष्यके आश्रयसे विविध सौख्ज्य प्राप्त होता है । भद्रिकाके अंतर्गत भ्रामरी दशामें रुधिर, अग्नि और यमसे भय, गृह क्षेत्र शत्रुका नाश और अपने बंधुजनकरके सुख होता है ॥३३-३९॥
उल्कादशाके अंतर्गत उल्कादशामें शत्रुकरके साहस, धनकी हानि, महान् व्यथा और राज्यभ्रंमसे भय होता है । उल्काके अंतर्गत सिद्धदिशा अपने फलको छोडकर दूसरेके फलको देनेवाली और विदेशमें गमन करानेवाली होती है । उल्काके अंतर्गत संकटादशामें मरण समान कष्ट, स्त्री पुत्र नौकर इनको कष्ट हानि और अपने कुलका नाश होवै । उल्काके अंतर्गत मंगला दशामें मोह धन मित्र विवेक, स्त्री इनका सुख और मलका नाश होता है । उल्काके अंतर्गत पिंगलादशामें कुष्ठ ग्रीवा तथा शिरोरोगकरके पीडित और पृथ्वीपर भ्रमण करनेवाला मनुष्य होता है । उल्काके अंतर्गत धन्यादशामें न लाभ और न कुछ सुख, वातव्याधि, कफका उदय और स्त्री पुत्र स्वजनोंमें कलह होवै । उल्काके अंतर्गत भ्रामरीदशामें उद्विग्नचित्त, मोह भ्रम, शत्रुभय और अनेक क्लेश प्राप्त होते हैं । उल्काके अंतर्गत भद्रिकादशामें कल्याण, अर्थका लाभ, भूषण अंबरकी हानि, कुलसे तथा मित्रजनोंसे सुख प्राप्ति होता है ॥४०-४७॥
सिद्धादशाके अंतर्गत सिद्धादशामें अर्थका लाभ, स्वजनोंके साथ सुख, ऐश्वर्य सुख और मित्रका सुख होता है । सिद्धाके अंतर्गत संकटादशामें बंधन, चोर करके राजाकरके धनहानि, महान् भय और देशका त्याग होता है । सिद्धाके अंतर्गत मंगलादशामें भोग विलास, स्वजनोंकरके सुख, राजासे धनका लाभ और विविध सिद्धि प्राप्ति हो । सिद्धाके अंतर्गत पिगलादशामें मान, क्रोध, अग्निका दाह, अपने जनोंके साथ वैरका उदय और पराये द्रव्यका लाभ होता है । सिद्धाके अंतर्गत धन्यादशामें पूर्वपुष्पोंका संचय और सर्वत्र मनमानी सिद्धिका लाभ होता है । सिद्धाके अंतर्गत भ्रामरीदशामें व्यसन, स्थानत्याग और राजकुलसे भय होता है । सिद्धाके अंतर्गत भद्रिका दशामें मांगल्य, भोगविलास, विद्या, सौख्य, गुणका लाभ और कार्यकी सिद्धि होवै । सिद्धाके अंतर्गत उल्कादशामें धनधान्यका नाश, क्लेश शोक व्यसन करके युक्त, गुदारोग और मोह होता है ॥४८-५५॥
इति सिद्धान्तरफलम् ॥
संकटादशाके अंतर्गत संकटादशामें मरण, राजवंशसे हानि, देशका त्याग और धनका क्षय होता है । संकटाके अंतर्गत मंगलाकी दशामें शिरोरोग तथा व्याधि, व्यसन, अनेक रोग, स्त्रीकष्ट यह फल होता है । संकटाके अंतर्गत पिंगलादशामें अकस्मात् धनकी हानि, पुत्रशोक, शत्रुसे भय और स्वजनोंसे वियोग होता है । संकटाके अंतर्गत धन्यादशामें गुल्म उदरविकारसे पीडा, अपने जनोंमें महान् प्रमुख और देशमें कीर्तिका लाभ होता है । संकटाके अंतर्गत भ्रामरीदशामें पृथ्वीपर भ्रमण देशत्याग, ग्राम, पुर, द्वार, राज्यका नाश और शत्रुसे भय होता है । संकटाके अंतर्गत भद्रिका दशामें विद्या, अलंकारादियुक्त वस्त्र, महान् यशका लाभ, अन्यजनोंके साथ विग्रह यह फल होता है । संकटाके अंतर्गत उल्कादशमें धन और ग्रामका नाश, मृत्युसमान कष्ट, पशुओंमें और कुलमें कष्ट पीडा होवै । संकटाके अंतर्गत सिद्धादशामें विविध उत्साह, निजपुत्रका लाभ, सुखका उदय और मन प्रसन्न होता है ॥५३-६३॥