श्रीगणेशजीको तथा सरस्वती, ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा सूर्य आद्रि ग्रहोंको नमस्कार करके सूर्यकृत शास्त्रसे योगिनीदशाओंका क्रम स्फुटरीतिकरके कहताहूं विधिपूर्वक जन्म लेनेवाल मनुष्यका जन्म संवत्, ऋतु, अयन, मास, दिन, नक्षत्र तथा इष्ट समयको विचारकर जिस नक्षत्रमें जन्म हुआहो उस नक्षत्र संख्यामें तीन और मिलाकर आठसे भाग लेय । जो शेष बचै उससे मंगला आदि जन्मसमय दशा जानै. जिस दशामें जन्म हो उसका शुभाशुभ फल चिंतवन करै ॥१-३॥
मंगला १, पिंगला २, धन्या ३, भ्रामरी ४, भद्रिका ५, उल्का ६, सिद्धा ७, संकटा ८ ये आठ दशा नामसमान फलदायक जानना । एक, दो, तीन, चार, पांच, छः, सात, आठ वर्ष संख्याक्रमसे मंगला आदि दशाओंके जानना अर्थात् मङ्गला एक वर्ष रहती है, पिंगला दो वर्ष, धन्या तीन, भ्रामरी चार, भद्रिका पांच, उल्का छः, सिद्धा सात औंर संकटा आठ वर्षकी होती है. इनका फल दशाप्रवेशसमयमें अपनें २ नामके समान शुभाशुभ जानना । दशावर्ष संख्याके दिन करके उसको छत्तीससे भाग देकर जो भागाकार आवै वह दिवस सर्वदशामें मंगलान्तरके होते हैं. अनंतर वही भागाकार १।२।३।४।५।६।७।८ इससे गुणै तौ पिंगलादि योगिनी इनके अंतर्दशामें दिवस होते हैं । जन्मसमयके नक्षत्रकी गतनाडियोंको दशावर्षसे गुणाकरके कुल नक्षत्रकी नक्षत्रकी नाडियों ( भभोग ) से भागदे तौ लब्धि वर्षादि भुक्तदशाको होती है. भुक्तदशाको सर्व वर्षदशामें हीन करदे तौ भोग्यदशा वर्षादि आताहै उसको लिखे ॥४-६॥
मंगलादशा उत्कर्षताकरके अच्छे धर्ममें ब्राह्मण देवता गौमें भक्तिको देनेवाली, नानाभोग, यश, अर्थ, राजसम्मान और सुंदरपुत्रको देनेवाली मांगल्य विभूषण, वस्त्र, आयु, स्त्रीभोगको देनेवाली और ज्ञान आनंदकारी होती है । पिंगला दशा लगतेही हदयरोग, शोक, अनेक रोग, कुसंग, देह मानसी पीडा, शत्रुपीडा काला शरीर, ज्वर, पित्त, शूल, रोग, मलीनताको देनेवाली, स्त्री पुत्र नौकरसे प्राप्ति सन्मानको नाश करनेवाली, धनका खर्च करानेवाली दयाको नाश करनेवाली होती है । धन्यादशा धन्यतमा धनके आगम सुख व्यापार भोगको देनेवाली, मानकी वृद्धि करनेवाली, शत्रुजनोंको नाश करनेवाली, सौख्य देनेवाली, विद्या राजजनोंसे सन्मान ज्ञान अंकुरको बढानेवाली, अच्छे तीर्थके और देवतासिद्धके सेवनमें रति देनेवाली और भाग्यकारक होती है ॥७-९॥
भ्रामरीदशामें दुर्ग, वन, पर्वत, झाडी, बागादि तथा धूपसे दुःख पानेवाला, दूरसे दूर पियासे मृगके समान भ्रमण करनेवाला, राजाके घरमेंभे पैदाहुआ इस दशामें अपनी राज्यको छोडकर पृथ्वीपर भिक्षुककी तरह मारामारा फिरता है । भद्रिकादशाके प्रवेशमें अपने जनों ब्राह्मणों तथा देवताओंमें भक्ति, मित्रसे सन्मान, घरमें मांगलिक कार्य, श्रेष्थ व्यापारमें आसक्त मन, राज्य, सुंदर कपाल तिलकावली आदिसे विभूषित सप्त अप्सराओंके समान स्त्रियोंसे भोग क्रीडा आनंद और कल्याण होता है । उल्कादशा मान अर्थ गौ वाहन व्यापार अंबर आदिको नाश करनेवाली, सदा राजासे क्लेश देनेवाली, नौकर, उदर, कर्ण और पादमें रोगको देनेवाली और शरीरको नष्ट करनेवाली होती है ॥१०-१२॥
सिद्धादशा कार्यसिद्धि करानेवाली, सुंदरभोगको देनेवाली, मान अर्थको देनेवाली, विद्या राजजन प्रताप धन और अच्छे धर्मकी प्राप्ति करनेवाली, व्यापार अंबर भूषणादि और विवाहमांगल्यको देनेवाली, सत्संगाति तथा पुण्यसे राज्यविभवको देनेवाली कही है । संकटाकी दशामें मनुष्योंके राज्यका भ्रंश, अग्निदाह, पुर, नगर ग्रामगोष्ठी आदि अग्निकरके दाह, तृष्णा अंग, धातुक्षयरोग, विकलता, पुत्रस्त्रीका वियोग, मोह, शत्रुभय, शरीर दुर्बल विरोध और प्राणोंमें भी संकट होता है । भ्रामरी तथा उल्कादशाके अंतर्गत संकटादशामें मनुष्य यमराजके सदनको जाता है अर्थात् मृत्यु अथवा मृत्युसमान कष्ट होता है ॥१३-१५॥