बृहस्पति अन्तर्दशान्तर्गत बृहस्पतिकी उपदशामें यशका उदय, धन सुवर्णकी अधिक वृद्धि, सुखका समागम और मिष्टान्न भोजन प्राप्त होता है ॥१॥
बृहस्पतिकी अन्तर्दशान्तर्गत शनिकी उपदशामें घोडा, भूमि, पशुओंकी प्राप्ति हो, सर्वत्र सुख हो, सुंदर भोजन मिले और बहुत धान्य हो । बृहस्पतिकी अन्तर्दशान्तर्गत बुधकी उपदशामें विद्या, मौक्तिक, शस्त्रोंका लाभ, मित्रोंका भय स्नेह पक्कादि भोजन प्राप्त होता है । बृहस्पति अंतरान्तर्गत केतुकी उपदशामें बंधु तथा चौरादिकोंके कलहसे अथवा मृत्युसे भय और कुत्सित अन्नका भोजन प्राप्त होता है । बृहस्पतिके अन्तरान्तर्गत शुक्रकी उपदशामें हेम, वस्त्र, धनका लाभ, क्षेमकी वृद्धि भूषणोंका लाभ और मधुर क्षीरसंयुक्त भोजन प्राप्त होता है । बृहस्पति अंतर्दशान्तर्गत रविकी उपदशामें माता पिताके धनका भोग, राजासे मान्य और अठारहों भ्रमोंको प्राप्त होता है ॥ बृहस्पति अंतर्दशान्तर्गत चन्द्रमाकी उपदशामें दधि ( दही ) मधु ( सहत ) क्षीर ( घी दूध ) मणि तथा मुक्ताके व्यापारमें लाभ और कुक्षि - पादमें पीडा होती है । बृहस्पति अंतरान्तर्गत मंगलकी उपदशामें शस्त्र शत्रुसे भय, गंड, मंदाग्नि और अजीर्णरोग, कुत्सित धान्यका भोजन लाभ होता है । बृहस्पतिके अंतरान्तर्गत राहुकी उपदशामें चांडाल, व्याधि, तथा शत्रुजनोंकरके पीडा, वमन, भय और कटुक्षीरका भोजन प्राप्त होता है ॥१-९॥