भगवान् तुम्हारे चरणों में, मैं तुम्हे रिझाने आई हूँ ।
वाणी में तनिक मिठास नहीं, पर विय सुनाने आई हूँ ॥१॥
प्रभुका चरणामृत लेने को, है पास मेरे कोई पात्र नहीं ।
आँखों के दोनों प्यालों में, कुछ भीख माँगने आई हूँ ॥२॥
तुमसे लेकर क्या भेंट धरुँ, भगवान् ! आपके चरणों में ।
मैं भिक्षुक हूँ तुम दाता हो, सम्बन्ध बताने आई हूँ ॥३॥
सेवा को कोई वस्तु नहीं, फिर भी मेरा साहस देखो ।
रो-रोकर आज आँसुओं का, मैं हार चढ़ाने आई हूँ ॥४॥