हे गोविन्द राखो शरण अब तो जीवन हारे ।
नीर पीवन हेतु गयो सिंधु के किनारे ।
सिंधु बीच बसत ग्राह चरणधर पछारे ॥
चार प्रहर युध्द भयो ले गयो मझधारे ।
नाक कान डूबन लागे कृष्ण को पुकारे ।
द्वारका से शब्द सुनि गरुड़ चढ़ि पधारे ।
ग्राह को हरि मारि के गजराज को उबारे ॥
सूरश्याम मगन भये नन्द के दुलारे ।
तेरो मेरो न्याव होसी यमके दुआरे ॥