दीन दयाल शरण मैं तेरी तुम बिन नाथ कौन गति मेरी ।
जनम मरण में भटकत भूल्यो, कबहूँ न सुरति करी प्रभु तेरी ।
अबकी बेर मेरा संकट काटो, मेटो जनम-मरण की फेरी ॥१॥
हूँ गुणहीन कछु नहीं लायक, फिर भी मन अभिमान भर् योरी ।
अपनो जानि दया करो दाता, होऊँ मैं चरण-शरण प्रभु तेरी ॥२॥
चाह नहीं है भोग्य भोग की, चाह नहीं प्रभु स्वर्ग लोक की ।
चाह भरी है तुम दर्शन भर दो नाथ दयासे झोरी ॥३॥
आश तुम्हारे चरण कमल की, लेकर आयो मैं द्वार तुम्हारे ।
टुक-टुक निरखूँगा द्वार तुम्हारा, चाहे करो प्रभु कितनी देरी ॥४॥
लिया सहारा एक तुम्हारा, तुम हो दीन के हितकारी ।
कर किरपा उस राह पे डारो, निशदिन तेरी लगाऊँ मैं फेरी ॥५॥