नाथ मैं थारोजी थारो !
चोखो, बुरो, कुटिल अरु कामी जो कुछ हूँ सो थारो ॥१॥
बिगड़यो हूँ तो थारो बिगड़यो, थे ही मनै सुधारो ।
सुधर् यो तो प्रभु सुधर् यो थारो, थाँ सूँ कदे न न्यारो ॥२॥
बुरो, बुरो मैं भोत बुरो हूँ, आखर टाबर थारो ।
बुरो कुहाकर मैं रह जास्यूँ, नाँव बिगड़सी थारो ॥३॥
थारो हूँ, थारो ही बाजूँ, रहस्यूँ थारो थारो !!।
आँगलियाँ नुहँ परै न होवै, या तो आप बिचारो ॥४॥
मेरी बात जाय तो जाओ, सोच नहीं कछु म्हारो ।
मेरे बड़ो सोच यो लाग्यो, बिरद लाजसी थारो ॥५॥
जचै जिसतराँ करो नाथ ! अब, मारो, चाहे त्यारो ।
जाँघ उघाड़याँ लाज मरोगा, ऊँडी बात बिचारो ॥६॥