दिला दो भीख दर्शन की प्रभु तेरा भिखारी हूँ ॥टेर॥
चलकर दूर देशों से, तेरे दरबार मैं आया ।
खड़ा हूँ द्वार पे दिल में, तेरी आशा का धारी हूँ ॥१॥
फिरा संसार चक्कर में भटकता रात दिन बिरथा ।
बिना दीदार के तेरे, हमेशा मैं दुखारी हूँ ॥२॥
तुही माता पिता बन्धु, तुही मेरा सहायक है ।
तेरे दासन के दासों का चरण का सेवकारी हूँ ॥३॥
भरा हूँ पाप दोषन से, क्षमा कर भूल को मेरी ।
वो ब्रह्मनंद सुन विनती, शरण में मैं तिहारी हूँ॥४॥