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निवेदन - हे मेरे गुरुदेव करुणा ...

’निवेदन’ मे प्रस्तुत जो भी भजन है, वे सभी विनम्र भावोंके चयन है ।


हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु करुणा कीजिये ।

हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये ॥टेर॥

खा रहा गोते हूँ मैं भवसिन्धु की मझधार में ।

आसरा है दूसरा कोई न इस संसार में ॥१॥

मुझमें है जप तप न साधन और नहीं कुछ ज्ञान है ।

निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है ॥२॥

पाप बोझ से लदी नैया भँवर में आ रही ।

नाथ दौड़ो अब बचाओ, जल्द डूबी जा रही ॥३॥

आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगा मैं ।

जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा मैं ॥४॥

सब जगह मंजिल भटक कर अब शरण ली आपकी ।

पार करना या न करना दोनों मरजी आपकी ॥५॥

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Last Updated : January 22, 2014

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