प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो ।
समदरसी है नाम तिहारो , चाहे तो पार करो ॥१॥
इक लोहा पूजामें राखत, इक घर बधिक परो ।
पारस गुण अवगुण नहिं चितवे, कंचन करत खरो ॥२॥
एक नदिया एक नार कहावत, मैलो हि नीर भरो ।
जब मिलिकै दोउ एक बरन भए, सुरसरि नाम परो ॥३॥
एक जीव इक ब्रह्म कहावत, ’सूर’ श्याम झगरो ।
अबकी बेर मोहि पार उतारो, नहिं पन जात टरो ॥४॥