मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष व्रत - शिवचतुर्दशीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


शिवचतुर्दशीव्रत

( मत्स्यपुराण ) - ' शास्त्रोंमें इस व्रतका विधान विशेष प्रकारसे वर्णन किया है, यहाँ उसका सम्पूर्ण समावेश नहीं हो सकता । इसलिये संक्षेपसे प्रकाशित करते हैं । ' इसके निमित्त मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशीको एकभुक्त व्रत करके चतुर्दशीको निराहार उपवास करे और शिवजीका पूजन करे । उसमें स्त्रान करानेके पीछे ' शिवाय नमः पादौ । सर्वात्मने नमः शिरः । त्रिनेत्राय नमः ललाटम् । हराय नमः नेत्रयुग्मम् । इन्दुमुखाय नमः मुखम् । श्रीकण्ठाय नमः स्कन्धौ । सच्चौजाताय नमः कर्णौ । वामदेवाय नमः भुजौ । अघोरहदयाय नमः हदयम्‍ । तत्पुरुषाय नमः स्तनौ । ईशानाय नमः उदरम् । अनन्तधर्माय नमः पार्श्वम् । ज्ञानभूताय नमः कटिम् । अनन्तवैराग्यसिंहाय नमः ऊरु । प्रधानाय नमः जङ्खे । व्योमात्मने नमः गुल्फौ और व्युप्तकेशात्मरुपाय नमः पृष्ठम् अर्चयामि । ' से अङ्गपूजा करके ' नमः पुष्ट्यै, नमस्तुष्ट्यै ' से पार्वतीका पूजन करे । उसके बाद वृषभ, सुवर्ण, जलपूर्ण कलश, गन्ध, पञ्जरत्न और अनेक प्रकारकी भोजनसामग्री - ये सब ' प्रीयतां देवदेवोऽन्न सद्योजातः पिनाकधृक् । ' से प्रार्थना करके ब्राह्मणके अर्पण करे और थोड़ा घी खाकर भूमिमें उदङमुख शयन करे । फिर पूर्णिमाको ब्राह्मणोंका पूजन करके उनको भोजन कराये और इसी प्रकार कृष्ण चतुर्दशीको भी करे । आगे हर महीनेमें दोनों पक्षकी चतुर्दशीको शिव - पूजनादिके पश्चात् मार्गशीर्षमें गोमूत्र, पौषमें गोबर, माघमें गोदुग्ध, फाल्गुनमें गोदधि, चैत्रमें गोघृत, वैशाखमें कुशोदक, ज्येष्ठमें पञ्जगव्य, आषाढ़में बिल्व, श्रावणमें जौ, भाद्पदमें गोश्रृङ्गजल आश्विनमें जल और कार्तिकमें काले तिल - इनको यथाविधि भक्षण करे । शिवके पूजनमें मासभेदसे भी पुष्पादि अर्पण किये जाते हैं । यथा मार्गशीर्षमें सिन्दुवार, वैशाखमें अशोक, ज्येष्ठमें मल्लिका, आषाढ़में पाटल, श्रावणमें अर्क - पुष्प, भाद्रपदमें कदम्ब, आश्विनमें शतपत्री और कार्तिकमें उत्पल - इनसे देवदेवेश महादेवका पूजन करे तो महाफल प्राप्त होता है । शास्त्रोंमें इसका अनन्त फल लिखा है ।

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Last Updated : January 01, 2002

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