मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष व्रत - यमादर्शन

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


यमादर्शन

( स्कन्दपुराण ) - यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्लकी जिस त्रयोदशीको क्रूर ( सूर्य, भौम और शनि ) वार न हों और सौम्य ( सोम, बुध, बृहस्पति एवं शुक्र ) वार हों उसी त्रयोदशीसे आरम्भ करके वर्षपर्यन्त करे । इसका विधान स्वयं यमने ही इस प्रकार प्रकाशित किया है कि उस दिन यम नामके ' काल, दण्डधर, अन्तक, शीर्णपाद, कङ्क, हरि और वैवस्वत ' जैसे नामोंवाले आठ - पाँच ( तेरह ) ब्राह्मणोंको पवित्र स्थानमें अलग - अलग पूर्वाभिमुख बैठाकर मस्तक आदि अङ्गोमें तैल - मर्दन करके कवोष्ण ( साधारण गर्म ) जलसे स्त्रान कराये और सुगन्धयुक्त गन्धादिसे चर्चित करके दुसरे स्थानमें उसी प्रकार पूर्वाभिमुख बैठकर गुड़के सुस्त्रिग्ध और सुस्वादु मालपूओंका यथारुचि भोजन कराये । उसके पीछे आचमन करवाकर ताँबके तेरह पात्रोंमें सोलह - सोलह सेर तिल और चावल भरकर ' लोकपालोऽघिना क्रूरो रौद्रो घोराननः शिवः । मम प्रसादात् सुमुखो ददात्वभयदक्षिणाम् ॥' से प्रणाम और प्रार्थना करके दक्षिणासहित उक्त तेरह पात्र उनके अर्पण करे तो इस व्रतके प्रभावसे यमका भयंकर रुप नहीं दीखता ।

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Last Updated : January 01, 2002

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