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पशूनांपतिं पापनाशं परेशं ...

वेदसारशिवस्तोत्रम् - पशूनांपतिं पापनाशं परेशं ...

शिव हि महान शक्ति असून त्रिमूर्तींपैकी एक आहेत. विश्वाची निर्मीती ब्रह्मदेवाने केली असून नाश करण्याचे कार्य शिवाचे आहे. शिवाचे वास्तव्य कैलास पर्वतावर आहे.
Shiva is one of the gods of the Trinity. He is said to be the 'god of destruction'. Shiva is married to the Goddess Parvati (Uma). Parvati represents Prakriti. Lord Shiva sits in a meditative pose on Mount Kailash against,  Himalayas.


पशूनांपतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्यकृत्तिं वसानं वरेण्यम् ।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम् ।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम् ।
भवं भास्वरं भस्मना भूषितांगं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् ।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोङ्कारवेद्यम् ।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु:
न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा ।
न चोष्णं न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्तिमूर्तिः त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र ।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् ।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ॥१०॥
त्वत्तो जगत् भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन् ॥११॥
चरणशृङ्गरहितनटराजस्तोत्रम्
(श्री पतंजलिकृतम्)
सदञ्चितमुदञ्चित निकुञ्चितपदम् झलझलच्चलितमञ्जुकटकम्
पतञ्जलिदृगञ्जनमनञ्जनमचञ्चलपदम् जननभञ्जनकरम् ।
कदम्बरुचिमम्बरवसम् परममम्बुदकदम्बकविडम्बकगलम्
चिदम्बुधिमणिम् बुधहृदम्बुजरविम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥१॥
हरम् त्रिपुरभञ्जनमनन्तकृतकङ्कणमखण्डदयमन्तरहितम्
विरिञ्चिसुरसम्हतिपुरन्दरविचिन्तितपदम् तरुणचन्द्रमकुटम् ।
परम्पदविखण्डितयमम् भसितमण्डिततनुम् मदनवञ्चनपरम्
चिरन्तनममुम् प्रणवसञ्चितनिधिम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥२॥
अवन्तमखिलम् जगदभङ्गगुणतुङ्गममतम् धृतविधुम् सुरसरि-
त्तरङ्गनिकुरम्बधृतिलम्पटजटम् शमनडम्भसुहरम् भवहरम् ।
शिवम् दशदिगन्तरविजृम्भितकरम् करलसन्मृगशिशुम् पशुपतिम्
हरम् शशिधनञ्जयपतङ्गनयनम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥३॥
अनन्तनवरत्नविलसत् कटककिङ्किणी झलम् झलझलम् झलरवम्
मुकुन्दविधिहस्तगतमद्दललयध्वनि धिमिद्धिमित नर्तनपदम् ।
शकुन्तरथ बर्हिरथ नन्दिमुख भृङ्गिरिटि सङ्घनिकटम्
सनन्दसनकप्रमुखवन्दितपदम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥४॥
अनन्तमहसं त्रिदशवन्द्यचरणम् मुनिहृदन्तरवसन्तममलम्
कबन्धवियदिन्द्ववनिगन्धवहवह्निमखबन्धुरविमञ्जुवपुषम् ।
अनन्तविभवं त्रिजगदन्तरमणिम् त्रिणयनम् त्रिपुरखण्डनपरम्
सनन्दमुनिवन्दितपदम् सकरुणम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥५॥
अचिन्त्यमणिबृन्दरुचिबन्धुरगलम् कुरितकुन्दनिकुरुम्बधवलम्
मुकुन्दसुरबृन्दबलहन्तृकृतवन्दनलसन्तमहिकुण्डलधरम् ।
अकम्पमनुकम्पितरतिम् सुजनमङ्गलनिधिम् गजहरम् पशुपतिम्
धनञ्जयनुतम् प्रणतरञ्जनपरम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥६॥
परम् सुरवरम् पुरहरम् पशुपतिम् जनितदन्तिमुखषण्मुखममुम्
मृडम् कनकपिङ्गलजटम् सनकपङ्कजरविम् सुमनसम् हिमरुचिम् ।
असंगमनसम् जलधिजन्मगरलम्कबलयन्तमतुलम्गुणनिधिम्
सनन्दवरदम् शमितमिन्दुवदनं प परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥७॥
अजं क्षितिरथम् भुजङ्गपुङ्गवगुणम् कनकशृङ्गिधनुषम्
करलसत्कुरङ्गपृथुटङ्कपरशुम् रुचिरकुङ्कुमरुचिम् डमरुकम् च दधतम् ।
मुकुन्दविशिखम् नमदवन्ध्यफलदम् निगमवृन्दतुरगम् निरुपमम्
सचण्डिकममुम् झटिति सम्हृतपुरम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥८॥
अनङ्गपरिपन्थिनमजं क्षितिधुरन्धरमलम्करुणयन्तमखिलम्
ज्वलन्तमनलम् दधतमन्तकरिपुम् सततमिन्द्रसुरवन्दितपदम् ।
उदञ्चदरविन्दकुलबन्धुशतबिम्बरुचिसम्हति सुगन्धि वपुषम्
पतञ्जलिनुतम् प्रणवपञ्जरशुकम् परचिदम्बरनटम् हृदि भज ॥९॥
इति स्तवममुं भुजगपुङ्गवकृतम् प्रतिदिनम् पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभु पदद्वितय दर्शनपदम् सुललितम् चरणशृङ्गरहितम् ।
सरः प्रभवसंभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शङ्करपदम्
स गच्छति परम् न तु जनुर्जलनिधिम् परमदुःखजनकम् दुरितदम् ॥१०॥

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Last Updated : February 19, 2018

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