हिन्दी पदावली - पद २२१ से २२९

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



२२१
अकुल पुरुख इकु चलितु उपाइआ । घटिघटि अंतरि ब्रहमु लुकाइआ ॥
जीअ की जोति न जाने कोई । तै मै किआ सु मालूमु होई ॥
जिऊ प्रगासिआ माटी कुंभऊ । आपही करता बीठलु देऊ ॥
जीअ का बंधनु करम बिआपै । जो किछु किआ सो आपै आपै ॥
प्रणवति नामदेऊ इहु जीऊ बितवै सु लहै । अमरु होइ सद आकुल रहै ॥

केवल सर्बगी में प्राप्त होनेवाले पद
२२२
येक बीठला सरणैं जा रे । जनमें बांधि काइ दौडा रे ॥टेक॥
तीरथैं तीरथैं काही डारे । लटक्यौं डोथा तूंबा रे ॥१॥
फोका दइया तुलसी बाहा रे । घूसरि षायद जोडा रे ॥२॥
नामदेव भणैं तू देव पहा रे । केसौ भगता चरिणीयां रे ॥३॥

२२३
पद नृषत किन जाइ रे दिना । हमप छिपानौ रे मना ॥टेक॥
जै तूं दरस्य करस्य घाई । तौ तूं निमससि ठाई कौंठाई रे मना ॥१॥
घट भरिलै उदीक चढोई । ऐसे तूं निहचल होई रे मना ॥२॥
नामा भणै सुष सुरगै नाहीं । सो सुष संतनि माही रे मना ॥३॥

२२४
कुनौ कृपा छल होइ सूं आवरी ।
बिघन व्याधी तेथै काल काई करी ॥टेक॥
एक बहबाला महापुरी बल सीया भीतरी ।
तहाँ जीवल हूँता तारु, तेन्है धरीला निजकरी ॥१॥
ऐक उदय सभूतिला तास दीया सनमुष भेटीला ।
नीधनिया धौरी सुधनवंत कैला ॥२॥
हे हरे दीपावली गुणी रेषिला ।
सुटत सुनौं श्रपै पारधी डंकिला ॥३॥
गाझचै पांणधी घडपाविंला ।
तहाम जीवल हूं तासीहूं । तेणें बाधनि रदाडिला ॥४॥
ऐसे अच्यत्र चरयूंत्र नटकलेवा देवा ।
बिष्नदास नामा बीनवै ह केसवा ॥५॥

अन्य स्त्रोतों से प्राप्त पद
२२५
भाई रे इन नयननि हरि पेषो ॥
हरी की भक्ति साधु की संगति सोई दिन धनि लेख्यो ।
चरन सोई जो नचत प्रेम सो, कर जो करै नित पूजा ॥
सीस सोई जो नवै साधु को, रसना और न दूजा ।
यह संसार हाट कौ लेखा, सब कोउ बनीजहिं आया ।
जिन जस लादा तिन तस पाया, मूरख मूल गवाया ॥
आतम राम देह धरि आयो, तामै हरि कौ देखौ ।
कहत नामदेव बलि बलि जैहो, हरि मनि और न लेखौ ॥

२२६
रुखडी न खाइयो स्वामी रुखडी न खाइयो ।
हाथ हमारे घिरत कटोरी, अपनी बांटा ले जाइयो ॥
दौडे दौडे जात स्वामी रोटणियां मुख मांहि ।
हम तौ दौंडे पहुँच न साकै, मेल लेहु गोसाइं ॥
घट घट वासी सर्व निवाई, पलमें भेष बनाया ।
कूकर ते ठाकूर भये प्रगटे नामदेव दरसन पाया ॥

२२७
अस मन लाव राम रसना । तेरो बहुरी न होय जरा मरना ॥१॥
जैसे मृगा नाद लव लावै । बान लगे वहि ध्यान लगावै ॥२॥
जैसे कीट भृङ मन दीन्ह । आपु सरीखे वा को कीन्ह ॥३॥
नामदेव भनै दासन दास । अब न तजौं हरि चरन निवास ॥४॥

२२८
मोर पिया बिलम्यो परदेस, होरी मैं का सौं खेलौं ।
घरी पहर मोहिं कल न परतु है, कहत न कोउ उपदेस ॥१॥
झरयो पात बन फूलन लाग्यो, मधुकर करत गुंजार ।
हाहा करौं कंथ घर नाहीं, के मोरी सुनै पुकार ॥२॥
जा दिन तें पिय गवन कियो है, सिंदुरा न पहिरौं मंग ।
पान फुलेल सबै सुख त्याग्यो, त्याग्यो, तेल न लावों अंग ॥३॥
निसु बासर मोहिं नींद न आवै, नैन रहे भरपूर ।
अति दारुन मोहिं सवति सतावै, पिय मारग बडि दूर ॥४॥
दामिनि दमकि घटा घहरानी, बिरह उठै घनघोर ।
चित चातृक है दादुर बोलै, वहि बन बोलत मोर ॥५॥
प्रीतम को पतियां लिखि भेजौं, प्रेम प्रीति मसि लाय ।
बेगि मिलो जन नामदेव को, जनम अकारथ जाय ॥६॥

साखी
२२९
अभिअंतर नहीं भाव, नाम कहै हरि नांव सूं ।
नीर बिहूणी नांव, कैसे तिरिबौ केसवे ॥१॥
अभि अंतरि काला रहै, बाहरि करै उजास ।
नांम कहै हरि भजन बिन, निहचै नरक निवास ॥२॥
अभि अंतरि राता रहै, बाहरि रहै उदास ।
नांम कहै मैं पाइयौ, भाव भगति बिसवास ॥३॥
बालापन तैं हरि भज्यौं, जग तैं रहे निरास ।
नांमदेव चंदन भया सीतल सबद निवास ॥४॥
पै पायौ देवल फिरयौ, भगति न आई तोहि ।
साधन की सेवा करीहौ नामदेव, जौ मिलियौ चाहे मोहि ॥५॥
जेता अंतर भगत सूं तेता हरि सूं होइ ।
नाम कहै ता दास की मुक्ति कहां तैं होइ ॥६॥
ढिग ढिग ढूंढै अंध ज्यूं, चीन्है नाहीं संत ।
नांम कहै क्यूं पाईये, बिन भगता भगवंत ॥७॥
बिन चीन्हया नहीं पाईयो, कपट सरै नहीं काम ।
नांम कहै निति पाईये, रांम जनां तैं राम ॥८॥
नांम कहै रे प्रानीयां, नीदंन कूं कछू नांहि ।
कौन भांति हरि सेईये, रांम सबन ही मांहि ॥९॥
समझ्या घटकूं यूं बणै, इहु तौ बात अगाधि ।
सबहनि सूं निरबैरता, पूजन कूं ऐ साध ॥१०॥
साह सिहाणौ जीव मैं, तुला चहोडो प्यंड ।
नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न सब ब्रह्मंड ॥११॥
तन तौल्या तौ क्या भया, मन तोल्या नहि जाइ ।
सांच बिना सीझसि नहीं, नाम कहै समझाइ ॥१२॥
दान पुनि पासंग तुलै, अहंडै सब आचार ।
नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न जग ब्यौहार ॥१३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : January 02, 2015

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP