हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद १२१ से १३० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद १२१ से १३० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद १२१ से १३० Translation - भाषांतर १२१छांडि दे रे मन हमिता ममिता । सब घट रांम रह्यौ रमि रमता ॥टेक॥आसा करि मन जइये जहिंया । राम बिना सुष नाहीं तहिंया ॥१॥जन की प्रीति अगम पियारी । ज्यों जल निरषि भरै पनिहारी ॥२॥भणत नांमदेव सब गुन आगर । भजि हरि चरन कृपा सुष सागर ॥३॥१२२हरि भजि हरि भजि हरि भजि मूल । बिन हरि भजन परै मुषि धूल ॥टेक॥अनेक बार पसु ह्रै अवर्यौ । लष चौरासी भरमत फिर्यौ ॥१॥पायौ नहीं कहीं विश्राम । सतगुर सरनि कह्यौ नहीं राम ॥२॥राज काज सुत बित सब जाइ । अविनासी सौं प्रीति लगाइ ॥३॥इहिं उनमान भगत ब्रत धरै । जरा मरन भव संकट टरै ॥४॥गुणसागर गोविंद गुण गाइ । अपनौ विरद बिसरि जिनि जाइ ॥५॥प्रणवत नामदेव संत सधीर । चरन सरन राषै हरि नीर ॥६॥१२३जे न भजै नर नारांइना । ताका मैं न करौं दरसना ॥टेक॥जाहिं सवारे आवहिं सांझ । ते नर गिनिए पसुवा मांझ ॥१॥जिनके हरि नही अभिअंतरा । जैसे पसवा तैसे नरा ॥२॥जैसी संतौ विष की डरी । तैसी पर घर की सुंदरी ॥३॥परधन परदारा परहरी । तिनके निकटि बसै नरहरी ॥४॥प्रणवत नामदेव नांका बिना । न सोहै बतीस लक्षनां ॥५॥१२४आन न जानौं देव न देवा । जित जित प्राण तित ही तेरी सेवा ॥टेक॥तूं सुष सागर आगर दाता । तूं ही मेरे प्राण पिता गुर माता ॥१॥नामौं भणै मेरे सब कुछ साईं । मनसा बाचा दूसर नाहीं ॥२॥१२५पांडे मोंहि पढावहु हरी । विद्या अपनी राषउ धरी ॥टेक॥बारहू अक्षर की बाहूर खडी । हरि बिन पढिबे की आषडी ॥१॥ररौ ममौ दोऊ अषिरा । पार उतारै भव सागरा ॥२॥हम तुम पांडे कैसा बाद । रामनाम पढिहैं प्रहिलाद ॥३॥पतरा पोथी परहा करौ । रामनाम जपि दुस्तर तरौ ॥४॥थंभा मांहि प्रगट्यो हरी । नामदेव कौ स्वामी नरहरी ॥५॥१२६रामनांम मेरे पूंजी धनां । ता पूंजी मेरौ लागौ मना ॥टेक॥यहु पूंजा है अगम अपार । ऐसा कोई न साहूकार ॥१॥साह की पूंजी आवै जाइ । कबहूं आवै मूल गंवाइ ॥२॥जारी जरै न काई षाइ । राजा डंडै न चोर लै जाइ ॥३॥अलष निरंजन दीन दयाला । नामदेव कौ धन श्रीगोपाला ॥४॥१२७रामनांम मैं पिंड पषाला । मल नहीं लागै जपत गोपाल ॥टेक॥रामनाम डूंगर सी सिला । धोबिया धोवै अंतरि मला ॥१॥बरणांश्रम नाना मती । नांमदेव का स्वामी कंबलापती ॥२॥१२८हरि दरजी का मरम न पाया । जिनि यहु बागा षूब बनाया ॥टेक॥पाणी का चित्र पवन का धागा । ताकूं सीवत मास दस लागा ॥१॥स्यौं सुरवाल मुकट बनि आया । ये दोइ हीरालाल लगाया ॥२॥भगति मुकति का पटा लिषाया । पूरण पारब्रह्म पद पाया ॥३॥आपै सीवै पहिरावै । निरत नांमदेव नांव धरावै ॥४॥राग कनडौ१२९तू मेरौ ठाकूर तूं मेरौ राजा हौं तेरे सरनैं आयो हो ।जस तुम्हारौ गावत गोविंद न लोगनि मारि भगयो हो ॥टेक॥आलम दुनी आवत मैं देषी साइर पांडे कोपिला हो ।सुद्र सुद्र करि मारि उठायो, कहा करौ मेरे बाबुला हो ॥१॥प्राण गये जे मुकति होत है सो तो मुकति न दीसै कोई हो ।ये बांभण मोंहि सुद्र कहत हैं, तेरी पैज पिछौडी होई हो ॥२॥भई चहूं दिसि अचिरज भारी, अदबुद बात अपारा हौ ।दास नांमा कौ भयौ दुवारौ पंडित कौ पछिवारा हौ ॥३॥१३०दुरबल गरिबा राम कौं, हरि कौ दास मैं जन सेवग तेरा ॥टेक॥अचार व्यौहार जाप नहीं पूजा, ऐसो भगत आयो सरनिला ॥१॥नामा भणै मैं सेवग तेरा । जनमि जनमि हरि उरगिला ॥२॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP