हिन्दी पदावली - पद २१ से ३०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



२१
जौ लग राम नामै हित न भयौ ।
तौ लग मेरी मेरी करता जनम गयौ ॥टेक॥
लागी पंक पंक लै धोवै । निर्मल न होवै जनम बिगोवै ॥१॥
भीतरि मैला बाहरि चोषा । पाणीं पिंड पषालै धोषा ॥२॥
नामदेव कहै सुरही परहरिये । भेड पूंछ कैसे भवजल तरिये ॥३॥

२२
काहे कू कीजै ध्यांन जपना । जो मन नाहीं सुध अपना ॥टेक॥
सांप कांचली छाडै विष नहीं छाडै । उदिक मैं बग ध्यान माडै ॥१॥
स्यंघके भोजन कहा लुकाना । ये सब झूठे देव पुजाना ॥२॥
नामदेव का स्वामीं मांनिले झगरा । रांम रसांइन पीवरे भगरा ॥३॥

२३
भगत भला बाबा काडला । बिन परतीतैं पूजै सिला ॥टेक॥
न्हावै धोवै करै सनान । हिरदै आंषिन माथै कान ॥१॥
गलि पहिरै तुलसी की माला । अंतरगति कोईला सा काला ॥२॥
नामदेव कहै ये पेटा बलू । भीतरि लाष उपरि हिंगलू ॥३॥

२४
सांच कहैं तौ जीव जव मारै । ऐक अनेक आगैं नित हारै ॥टेक॥
सांचे आषरि गोठिं बिनासै । भाजै हाड अभावै हासै ॥१॥
मन मैले की सुध नहीं जाणी । साबण सिला सराहै पाणी ॥२॥
ऊजल बांना नीच सगाई । पाषंड भेष कीऐ पति जाई ॥३॥
अपस अग्यांनी उजल हूवा । संसै गांठि पडी गलि मूवा ॥४॥
नामदेव कहै ये संष सरापी । पुंडरी नाथ न सुमिरै पापी ॥५॥

२५
साईं मेरौ रीझै सांचि । कूडै कपट न जाई राचि ॥टेक॥
भावै गावौ भावै नाचौ । जब लगि नाहीं हिरदै सांचौ ॥१॥
अनेक सिंगार करै बहु कामिनि । पीय के मनि नहीं भावै भामिनि ॥२॥
पतिव्रता पति ही कौ जानै । नामदेव कहै हरि ताकी मानै ॥३॥

२६
रतन पारषूं नीरा रे । मुलमा मंझै हीरा रे ॥टेक॥
संष पारषूं निरषी जोई । बैरागर क्यूं षोटा होई ॥१॥
कालकुष्ट विष बांध्यौ गांठि । कहा भयौ नहीं षायौ बांटि ॥२॥
षायौ विष कीन्हौ विस्तार । नामदेव भणै हरि गरुड उबार ॥३॥

२७
कौन कै कलंक रह्यौ राम नाम लेत ही ।
पतित पावन भयौ राम कहत ही ॥टेक॥
राम संगि नामदेव जिनहु प्रतीति पाई ।
एकादशी व्रत करै काहे कौ तीरथ जाई ॥१॥
भणत नांमदेव सुमिरत सुकृत पाई ।
राम कहत जन को न मुक्ति जाई ॥२॥

२८
राम नाम नरहरि श्री बनवारी । सेविये निरंतर चरन मुरारी ॥टेक॥
गुरु को सबद बैकुंठ निसरनी । ह्रदै प्राग प्रेंम रस वानी ॥१॥
जा कारन त्रिभुवन फिरि आये । सो निधान घटि भीतरि पाये ॥२॥
नामदेव कहै कहूं आइये न जाइये । अपने राम घर बैठे गाइये ॥३॥

२९
रांम जुहारि न और जुहारौ । जीवनि जाइ जनम कत हारौं ॥टेक॥
आनदेव सौं दीन न भाषौं । राम रसाइन रसना चाषौं ॥१॥
थावर जंगम कीट पतंगा । सत्य राम सब हिन के संगा ॥२॥
भणत नांमदेव जीवनि रामा । आंनदेव फोकट बेकामा ॥३॥

३०
जा दिन भगतां आईला । चारया मुक्ती पाईला ॥टेक॥
दरसन धोषा भागीला । कोई आइ सुकृत जागीला ॥१॥
सनमुष दरसन देषीला । तब जन्म सुफल करि लेषीला ॥२॥
साध संगति मिलि षेलीला । पांचू प्रबल पेलीला ॥३॥
बैसनो हिरदै समाईला । जन नामदेव आनंद गाईला ॥४॥

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Last Updated : January 02, 2015

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