हिन्दी पदावली - पद ३१ से ४०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



३१
संत सूं लेना संत सूं देना । संत संगति मिलि दुस्तर तिरना ॥टेक॥
संत की छाया संत की माया । संत संगति मिलि गोविंद पाया ॥१॥
असंत संगति नामा कबहूं न जाई । संत संगति मैं रह्यौ समाई ॥२॥

३२
पर हरि धंधाकार सबैला । तेरी चिंता राम करैला ॥टेक॥
नाराइन माता नाराइन पिता । बैस्नो जन परिवार सहेता ॥१॥
केसौ कै बहु पूत भयेला । तामैं नांमदेव एक तू दैला ॥२॥

३३
माई तूं मेरै बाप तूं । कुटूंबी मेरा बीठला ॥टेक॥
हरि हैं हमची नाव री । हरि उतारै पैली तिरि ॥१॥
साध संगति मिलि षेई चार । केसौ नामदेव चा दातार ॥२॥

३४
माइ गोव्यंदा बाप गोव्यंदा । जाति पांति गुरुदेव गोव्यंदा ॥टेक॥
गोव्यंद ग्यान गोव्यंद ध्यान । सदा आनंदी राजाराम ॥१॥
गोव्यंद गावै गोव्यंद नाचै । गोव्यंद भेष सदा नृति काछै ॥२॥
गोव्यंद पाती गोव्यंद पूजा । नामा भणै मेरे देव न दुजा ॥३॥

३५
हिरदै माला हिरदै गोपाला । हिरदै सिष्टि कौ दीन दयाला ॥टेक॥
हिरदै मांही रंग हिरदै छीपा । हिरदै रैणी पांणी नीका ॥१॥
हिरदै दीपक घटि उजियाला । षूटि किवार टूटि गयौ ताला ॥२॥
हिरदै रंग रोम नहीं जाति । रंगि रे नामा हरि की भांति ॥३॥

३६
अब न बिसारुं राम संभारुं । जौ रे बिसारुं तौ सब हारुं ॥टेक॥
तन मन हरि परि छिन छिन वारुं । घडी महूरति पल नहीं टारुं ॥१॥
सुमिरन स्वासा भरि भरि पीऊं । रंक राम गुड खाइ रे जीऊं ॥२॥
आरौ मांडि रम रटि लैहूं । जौ रे बिसारौं तौ रोइ दैहूं ॥३॥
नामदेव कहै ओर आस न करिहूं । राम नाम धन लाग्यौ मरि हूं ॥४॥

३७
राम राइ उलगुं और न जाचूं । सरीर अनंत जाउ भलै जाउ ॥टेक॥
जोग जुगुती कछु मुकति न भाषूं । हरि नांव हरि नांव हिरदै राषूं ॥१॥
राम नांम नांमदेव अनहद आछै । भगति प्रेम रस गावै नाचै ॥२॥

३८
बीहौं बीहौं तेरी सबल माया । आगै इनि अनेक भरमाया ॥टेक॥
माया अंतर ब्रह्म न दीसै । ब्रह्म के अंतर माया नहीं दीसै ॥१॥
भणत नामदेव आप बिधांनां । दहू घोडांन चढाइ हौ कान्हा ॥२॥

३९
बाजी रची बाप बाजी रची । मैं बलि ताकी जिन सूं बची ॥टेक॥
बाजी जामन बाजी मरना । बाजी लागि रह्यो रे मना ॥१॥
बाजी मन मैं सोचि बिचारी । आपै सुरति आपै सुत्रधारी ॥२॥
नामदेव कहै तेरी सरनां । मेटि हमारै जांमन मरना ॥३॥

४०
तूं न बिसारि तूं न बिसारि । मैं तूं विसार्‍यौ मोर अभाग ॥टेक॥
अषिल भवनपति गरडा गामी । अंति काल हरि अंतर जामी ॥१॥
जामन मरण बिसरजन पूजा । तुम सा देव और नहीं दूजा ॥२॥
तूंज बिसभर मैं जन नामा । संत जनन के पुरवन कामा ॥३॥

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Last Updated : January 02, 2015

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