हिन्दी पदावली - पद २११ से २२०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



२११
दूध कठोरै गडवै पानी । कपिला गाइ नामै दुहिआनी ॥
दूधु पीउ गोबिंदे राइ । दूध पीउ मेरो मनु पतिआइ ॥
नाहीं त घर को बापु रिसाइ ॥ रहाऊ ॥
सोइन कटोरी अंम्रित भरी । लै नामै हरि आगै धरी ॥
एकु भगतु मेरे हिरदै बसै । नामे देखी नराइनु हसै ॥
दूधु पीजाइ भगतु धरि गइआ । नामें हरि का दरसनु भइआ ॥

२१२
मै बऊरी मेरा रामु भतारु । रचि रचि ताकऊ करउं सिंगारु ॥
भले निंदऊ भले विंदऊ लोगू । तनु मनु राम पिआरे जोगू ॥
बादुविबादु काहू सिऊ न कीजै । रसना रामु रसाइनु पीजै ॥
अब जीअ जानि ऐसी बनि आई । मिलऊ गुपाल नीसानु बजाई ॥
असतुति निंदा नरु कोई । नामें श्रीरंगु भेटले सोई ॥

२१३
कबहू खीरि खांड घीऊ न भावै । कबहू घर घर टूक मगावै ॥
कबहू कूरनु चने बिनावै । जिऊ रामु राखै तिऊ रहिऐ रे भाई ॥
हरिकी महिमा किछु कथनु न जाई ॥
कबहू तुरे तुरंग नचावै । कबहू पाइ पनहीउ न पावै ॥
कबहू खाट सुपेदी सुवावै । कबहू भूमि पैआरु न पावै ॥
भनति नामदेऊ इकु नामु निसतारै । जिह गुरु मिलै तिह पारि ऊतारै ॥

२१४
हसत खेळत तेरे देहुरे आइआ । भगति करत नामा पकरि उठाइआ ॥
हीनडी जात मेरी जादभ राइआ । छीपे के जनमि काहे कऊ आइआ ॥
लै कमली चलीउ पलटाइ । देहुरै पाछै बैठा जाई ॥
जिऊ जिऊ नामा हरि गुण ऊचरै । भगत जनां कऊ देहुरा फिरै ॥

२१५
घर की नारि तिआगै अंधा । परनारी सिऊ घालै धंधा ॥
जैसे सिंबलु देखि सूवा बिगसाना । अंतकी बार मूआ लपटाना ॥
पापी का घरु आगने माहि । जलत रहै मिटवै कब नाहि ॥
हरि की भगति न देखै जाइ । मारगु छोडि अमारगि पाइ ॥
सूवहु भूला आवै जाइ । अम्रित डारि लादि बिखु खाइ ॥
जिऊ वेस्वावे परै आखारा । कापरु पहिरि करहि सिंगारा ॥
पुरे ताल निहाले सास । वाके गले जमका है फास ॥
जाके मसतकि लिखिउ करमा । सो भजि परि है गुरकी सरना ॥
कहत नामदेऊ इहु बीचारु । इन बिधि संतहु ऊतरहु पारि ॥

२१६
सुलतानु पूछै सुनु बे नामा । देखऊ राम तुमारे कामा ॥
नामा सुलताने बाधिला । देखऊ तेरा हरि बीठुला ॥
बिसमिलि गऊ देहु जीवाइ । ना तरु गरदनि मारऊ ठांइ ॥
बादिसाह ऐसी किऊ होइ । बिसमिलि कीआ न जीवै कोइ ॥
मेरा किआ कछू न होइ । करिहै रामु होइ है सोइ ॥
बादिसाहु चढीउ अहंकारि । गज हसती दीनो चमकारि ॥
रुदनु करै नामे की माइ । छोडि राम की न भजहि खुदाइ ॥
न हुऊ तेरा पूंगडा न तू मेरी माइ । पिंडु पडै तऊ हरिगुन गाइ ॥
करै गजिंदु सुंड की चोट । नामा ऊबरै हरिकी ओट ॥
काजी मुलां करहि सलामु । इनि हिंदू मेरा मलिआ मानु ॥
बादिसाह बेनती सुनेहु । नामे सर भरि सोना लेहु ॥
मालु लेऊ तऊ दोजकि परऊ । दीनु छोडि दुनिआ कऊ मरऊ ॥
पावहु बेडी हाथहु ताल । नामा गावै गुन गोपाल ॥
गंग जमुन जऊ ऊलटी बहै । तऊ नामा हरि करता रहै ॥
सात घडी जब बीती सुणी । अजहु न आइऊ त्रिभवण धणी ॥
पाखंतण बाज बजाइला । गरुड चढे गोबिंद आइला ॥
अपने भगत परि की प्रतिपाल । गरुड चढे आए गोपाल ॥
कहहि त धरणि इकोडी करऊ । कहहि त लेकरि ऊपरि धरऊ ॥
कहहि त मुइ गऊ देऊ जीआइ । सभु कोई देखै पतिआइ ॥
नामा प्रणवै सेलम सेल । गऊ दुहाई बछरा मेलि ॥
दूधहि दुहि जब मटुकी भरी । ले बादिसाह के आगे धरी ॥
बादिसाहु महल महि जाइ । अऊघट कीं घट लागी आइ ॥
काजी मुलां बिनती फुरमाइ । बखसी हिंदू मै तेरी गाइ ॥
नामा कहै सुनहु बादिसाह । इहु पतिआ मुझै दिखाइ ॥
इस पतिआ का इहै परवानु । साचि सील चालहु सुलितान ॥
नामदेऊ सभ रहिआ समाइ । मिलि हिंदू सभ नामे पहि जाइ ॥
नामे की कीरति रही संसारि । भगति जना ले उधरिआ पारि ॥
सगल कलेस निंदक भइआ खेदु । नामें नाराइन नाहीं भेदु ॥

२१७
जऊ गुरदेउ त मिलै मुरारि । जऊ गुरदेउ त ऊतरै पारि ॥
जऊ गुरदेउ त वैकुंठ तरै । जऊ गुरदेउ त जीवत भरै ॥
सति सति सति सति सतिगुर देव । झूठु झूठु झूठु झूठु आन सभ सेव ॥
जऊ गुरदेउ त नामु द्रिडावै । जऊ गुरदेउ त दह दिस धावै ॥
जऊ गुरदेउ पंच ते दूरि । जऊ गुरदेउ न मारिबे झूरि ॥
जऊ गूरदेउ त अम्रित बानीं । जऊ गुरदेउ त अकथ कहानीं ॥
जऊ गूरदेउ त अम्रित देह । जऊ गुरदेउ नाम जपी लेहि ॥
जऊ गूरदेउ भवन त्रै सूझै । जऊ गुरदेउ ऊच पद बूझै ॥
जऊ गूरदेउ त सीसु आकासि । जऊ गूरदेउ  सदा सावासि ॥
जऊ गूरदेउ  सदा बैरागी । जऊ गूरदेउ  पर निंदा तिआगी ॥
जऊ गूरदेउ  बुरा भला एक । जऊ गूरदेउ  लिलाट हि लेख ॥
जऊ गूरदेउ  कंधु नही हिरै । जऊ गूरदेउ  देहुरा फिरै ॥
जऊ गूरदेउ  त छापरि छाईं । जऊ गूरदेउ  सिहज निकसाई ॥
जऊ गूरदेउ  त अठसठि नाइआ । जऊ गूरदेउ  तनि चक्र लगाइआ ॥
जऊ गूरदेउ  त दुआदस सेवा । जऊ गूरदेउ  सभै बिखु मेवा ॥
जऊ गूरदेउ  त संसा टूटै । जऊ गूरदेउ  भऊजल तरै ।
जऊ गूरदेउ  त जनमि न मरै ॥
जऊ गूरदेउ  अठदस बिऊहार । जऊ गूरदेउ  अठारह भार ॥
बिनु गुरदेउ अवर नहीं जाई । नामदेउ गुरकी सरणाई ॥

२१८
साहिबु संकटवै सेवकु भजै । चिरंकाल न जीवै दोऊ कुल लजै ॥
तेरी भगति न छोडऊ भाजै लोगु हसै । चरन-कमल मेरे हीअरे बसै ॥ रहाऊ ॥
जैसे अपने धनहि प्राना मरतु भांडै । तैसे संत जनां रामनामु न छांडै ॥
गंगा गइआ गोदावरी संसारके कामा । नाराइणु सुप्रसंन होइ त सेवकु नामा ॥

२१९
सहज अवलि घुंडी मणी गाडी चालती । पीछै तिनका लैकरि हांकती ॥
जैसे धनकत ध्रुठिटि हांकती । सरि धोवन चाली लाडुली ॥
धोबी धोवै बिरह बिराता । हरिचरन मेरा मनु राता ॥
भणति नामदेउ रमि रहिआ । अपने भगतपर करि दइआ ॥

२२०
दास अनिंन मेरो निज रुप ।
दरसन निमख ताप त्रयी मोचन परसत मुकति करत ग्रिह कूप ॥
मेरी बांधी भगतु छडावै बांधै भगतु न छूटै मोहि ।
एक समै मोकऊ गहि बांधै तऊ फुनि मो पै जबाबु न होइ ॥
मै गुन बंध सगल का जीवनि मेरी जीवनि मेरे दास ।
नामदेव जाके जीअ ऐसी तैसे ताकै प्रेम प्रगास ॥

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Last Updated : January 02, 2015

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