हिन्दी पदावली - पद १११ से १२०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



१११
जब तब रांमनांम निसतारै ।
साठी घडी मैं ऐक घडी रे सोई सकल अघ जारै ॥टेक॥
कासीपुरी मंझि गौरपति अहनिसि सदा पुकारै ।
कीट पतंग सुनत गति पावै, गोविंद जस विसतारै ॥१॥
अजामेल गनिका, सुष पंषी, रसना रांम उचारै ।
गज पस व्याध तिरे हरि सुमिरत, महिमां व्यास विचारै ॥२॥
परम पुनीत नांव निसि बासुर, निज जन हरि ब्रत धारै ।
नामदेव कहै सोई दास कहावै, जीय तै छिन न बिसारै ॥३॥

११२
बापजी येतलौं अंतर कीधौं । जनम नाउं दरजीनौं दीधौं ॥टेक॥
बाभण उचरै बेदनै वाणी । जेतलौ अंतरौ दूधनै पाणी ॥१॥
जाग्रतनै आव्या व्यासनै भांटा । उठौं नांमदेव नांषिये छांटा ॥२॥
हमारी भगति न जाणी हो रामा । हंसि करि कृष्ण बुलाये नांमा ॥३॥

राग भैरुं
११३
नामदेव प्रीति नराइंण लागी । सहज सुभाइ भए बैरागी ॥टेक॥
जैसी भूषै प्राति अनाज । तृषावंत जल सेती काज ।
मूरिष नर जैसे कुटुंब पराइण । ऐसी नामदेव प्रीति नराइन ॥१॥
जैसे पर पुरिषा रत नारी । लोभी नर धन कौ हितकारी ।
कामी पुरिष काम रत नारी । ऐसी नामदेव प्रीति मुरारी ॥२॥
जैसी प्रीति बालक अरु माता । ऐसें यहु मन हरि सौं राता ।
नामदेव कहै मेरी लागी प्रीति । गोबिंद बसै हमारे चीत ॥३॥

११४
नाइं तिरौं तेरे नाइं तिरौं नाइं तिरौं हो बाप रामदेवा ॥टेक॥
नित अमावस नितै पुन्यू, नितै ही रवि चंदा ।
गंगा जमुना संगम देखूं, आनंद लहरि तरंगा ॥१॥
घट ही बेणी तीरथ आछै, मरम न जानै कोई ॥
चित्त विहंगम चेति न देषै, काहू लिपत न होई ॥२॥
ग्यांन सरोवर मंजन मंज्या, सहजै छूटिलै भरमा ।
नामा संगै राम बोलै, रामनाम निहकरमा ॥३॥

११५
भगवंत भगता नहीं अंतरा । द्वै करि जानैं पसुवा नरा ॥टेक॥
छाडि भगवंत वेद विधि करै । दाझै भूजै जामैं मरै ॥१॥
कथनी वदनी सब कोइ कहै । करनी जन कोई विरला रहै ॥२॥
कहत नामदेव ममता जाइ । तौ साध संगति मैं रह‌या समाइ ॥३॥

११६
रांम रांम रांम जपिबौ करै । हिरदै हरि जी कौ सुमिरन धरै ॥टेक॥
संडामरका जाइ पुकारे । पढे नहीं हम सब पचि हारे ।
हरि हरि कहै अरु ताल बजावै । चटरा सबै बिगारे ॥१॥
सब वसुधा बसि कीन्हीं राजा । बीनती करै पटरानी ।
पुत्र प्रहिलाद कह्‌यौ नहीं मानत । इहिं कछु औरै ठानी ॥२॥
राजसभा मिलि मंत्र उपायो । बालिक बुधि घणेरी ।
जलथल गिरि ज्वाला थैं राख्यो । राम राइ माया फेरी ॥३॥
काढि षडग काल ह्रै कोप्यौ । मोहिं बताइ तोहिं को राषै ।
षंभा मांहि प्रगट्यौ परमेश्वर । संकल बियापी सति भाषै ॥४॥
हरिनाकुसकौ उदर विदार‌यौ । सुर नर कीये सनाथा ।
भणत नामदेव तुम्ह सरणगति । राम अभै पद दाता ॥५॥

११७
जौ बोलै तौ रामहिं बोलि । नहीं तर बदन कपाट न षोलि ॥टेक॥
जे बालिये तो कहिये रांम । आन बकन सौं नाहीं काम ॥१॥
राम नाम मेरे हिरदै लेष । राम बिना सब फोकट देष ॥२॥
नामदेव कहै मेरे एकै नाउं । रामनांम की मैं बलि जाउं ॥३॥

११८
जपिरांम नाम मंत्रावला । कलियुग मरणां उतावला ॥टेक॥
दिवस गंवाया ग्रिह व्यौहार । राति जु आई अंधाकार ॥१॥
दूरि पयानां अवघट घाट । क्यों निस्तरिबौ संग न साथ ॥२॥
भणत नामदेव औघट तिरी । अरधै नांव उधारै हरी ॥३॥

११९
मैला मलिता सब संसार । हरि निरमल जाकौ अंत न पार ॥टेक॥
मैला वीरज मैला षेत । मन मैला काया जस हेत ॥१॥
मैला मोती मैला हीर । मैला पवन पावक अरु नीर ॥२॥
मैला तीन लोक ब्रह्मांड इकवीस । मैला निसिबासुर दिनतीस ॥३॥
मैला ब्रह्मा मैला इंद्र । सहसकला मैला रवि चंद ॥४॥
सब जग मैला आनहिं भाई । जन निर्मल जब हरि गुन गाई ॥५॥
मैला पुनि अरु मैला पाप । मैला आनदेव का जाप ॥६॥
मैला तीरथ मैला दान । व्रत मैला पूजा सनांन ॥७॥
मैला सुर मैली सुरसरी । नामदेव कौ ठाकुर निरमल हरी ॥८॥

१२०
जागि रे जीव कहा भुलाना । आगै पीछै जाना ही जाना ॥टेक॥
दिवस चारि का गोवलि बासा । तामैं तोहिं क्यौं आवै हासा ॥१॥
इहि भ्रमि लागि कहां तू सोवै । काहे कूं जनम बादि ही षोवै ॥२॥
कहां तू  सोवै बारंबारा । रामनाम जपि लेउ गंवारा ॥३॥
भणत नांमदेव चेति अयांना । औघट घाट अरु दूरि पयांना ॥४॥

N/A

References : N/A
Last Updated : January 02, 2015

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP