हिन्दी पदावली - पद १८१ से १९०

संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की ।



१८१
राजनाम नीसाण बागा । ताका मरम को जाणै भागा ॥टेक॥
बेद विवर्जितो, भेद विवर्जिती । ज्ञान विवर्जित शून्यं ।
जोग विवर्जिति जुगती विवर्जिति । ताहा नहीं पाप पुण्यं ॥१॥
सोंग विवर्जित भेख विवर्जित । डिंभ विवर्जित लीला ।
कहे नामदेव आपहा आप ही । व्याप्य सरीर सकला ॥२॥

१८२
हीन दीन जात मोरी पंढरी के राया ।
ऐसा तुमने नामा दरजी कायक बनाया ॥१॥
टाल बिना लेकर नामा राऊल में गाया ।
पूजा करते ब्रह्मन उनैन बाहेर ढकाया ॥२॥
देवल के पिछे नामा अल्लक पुकारे ।
जिदर जिदर नामा उदर देऊलहिं फिरे ॥३॥
नाना बर्ण गवा उनका एक बर्ण दूध ।
तुम कहां के ब्रह्मन हम कहां के सूद ॥४॥
मन मेरी सुई तनो मेरा धागा ।
खेचरजी कें चरण पर नामा सिंपी लागा ॥५॥

१८३
हम तो भूले ठाकुर जानें । तुम कौ गाई झूट दिवाने ॥१॥
नाला अप आप सागर हुवा । काहे के कारण रोता है कुवा ॥२॥
चंदन के साती लिंब हुवा चंदन । क्यौं कर रोवे देखो ए हिंगन ॥३॥
गुरु की मेहेर से नामा भये साधु । देखत रोने लगे जन हे भोंदु ॥४॥

१८४
राम विठ्ठला । हम तुमारे सेवक ॥१॥
बालक बेला माई विठ्ठल बाप विठ्ठल । जाती पाती गुलगोत विठ्ठस (ल) ॥२॥
ग्यान विठ्ठल ध्यान विठठल । नामा का स्वामी प्राण विठठल ॥३॥

१८५
भले बिराजे लंबकनाथ ॥धृ०॥
धरणी पाय स्वर्ग लोक माथ । योजन भर के हाथ ॥१॥
सिव सनकादीक पार न पावे । अनगन सखा विराजत साथ ॥२॥
नामदेव के आपही स्वामी । कीजे मोहि सनाथ ॥३॥

१८६
रामनाम बीन और नही दूजा । कृष्णदेव की करी पूजा ॥१॥
राम ही माई रामही बाप । राम बिना कुणा ठाई पाप ॥२॥
संपत्ती विपत्ती रामही होई । राम बिना कुण तारी हे मोही ॥३॥
भणत नामा अमृत सार । सुमरी सुमरी उतरे पार ॥४॥

१८७
पंढरीनाथ विठाई बतावो मुजे पंढरीनाथ विठाई ॥धृ०॥
मायबाप के सेवा करीये पुंडलीक भक्त सवाई ।
वैकुंठ से विष्णु लाये खडे करकर बतलाई ॥१॥
चन्द्रभागा बालबंट पर कबिरा धूम चलाई ।
साधुसंत की हो गई गर्दी भजन कुटाई खुब खाई ॥२॥
त्रिगुणा में रेनु बजावे सागर का जबाई ।
दही दूध की हंडी फुट गई मर मर मुध‌या पाई ॥३॥
नामदेव देके गुरु शिखावें खेचरी मुद्रा गाई ।
कृष्ण जी की बार बार गावै हरिनाम बढाई ॥४॥

१८८
मै को माधव मलमूत्र धारी । मै कहां जानो सेवा तुम्हारी ॥१॥
तुम्हरि घर को भांडवी दावत । तुम्हारे घरको आखि कलावत ॥२॥
नामदेव कहे देव नीके देवा । सुर नर फुनीग तुम्हारी सेवा ॥३॥

१८९
तुम बिनु घरि येक रहूं नहि न्यारा । सुन यह केसव नियम हमारा ॥
जहाँ तुम गीरीवर ताहां हम मोरा । जहाँ तुम चंदा तहां मैं चकोरा ॥१॥
जहाँ तुम तरुवर तहां मैं पछी । जहाँ तुम सरोवर तहां मैं मच्छी ॥२॥
जहाँ तुम दिवा तहां मैं बत्ती । जहाँ तुम पंथी तहां मैं साथी ॥३॥
जहाँ तुम शिव तहां मैं बेलपूजा । नामदेव कहे भाव नहीं दूजा ॥४॥

१९०
सावध सावध भज लेरे राजा । नहीं आवे ऐसी घडी जू ॥धृ०॥
उत्तम नरतनु पाया रे भाई । गाफल क्यों हुवा दिवाने जू ॥१॥
जिन्ने जन्म डारा है तुजकूं । विसर गया उनका ग्यान जू ॥२॥
फिर पस्तायेगा दगा पायेगा । निकल जायगा आवसान जू ॥३॥
क्या करना सो आजि करले । फिर नहिं ऐसी जोडी जू ॥४॥
हंस जायगा पिंजरा पडेगा । तुज कैसा भुल पडी जू ॥५॥
सुन्ने का मन्दिर मेहेल बनाया । धन संपत नहिं तेरी जू ॥६॥
यामै न और जोरु लडके । सुखके खातर सोर जू ॥७॥
अकेले आना अकेले जाना । सब झुटी माया पसरी जू ॥८॥
लख चौर्‍यासी का फेरा आवेगा । तब चुपी बैठे बंदे जू ॥९॥
फिरतां फिरतां जीव रमता है बाबा । कोन रखे तेरे तन कूं जू ॥१०॥
जिस माया उदरी जन्म लियेगा । तेरे संगत दुख उनकू जू ॥११॥
गरमी की यातना सुनले रे भाई । नवमास बंधन डारे जू ॥१२॥
नहीं जगा हलने चलने कू बाबा । छडनिकु कोई नहीं आवे जू ॥१३॥
आग लगी क्या देख न आंधे । काय के खातर सोया जू ॥१४॥
ऐसी बात सुन के नामा सावध हुवा । गुरुके पाव मिठी डारी ॥१५॥
मैं आनाथ दुबले शरण सये तुजकू । आब जो मेरी लाज राखी जू ॥१६॥

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Last Updated : January 02, 2015

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