हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|हिन्दी पदावली| पद १८१ से १९० हिन्दी पदावली पद १ से १० पद ११ से २० पद २१ से ३० पद ३१ से ४० पद ४१ से ५० पद ५१ से ६० पद ६१ से ७० पद ७१ से ८० पद ८१ से ९० पद ९१ से १०० पद १०१ से ११० पद १११ से १२० पद १२१ से १३० पद १३१ से १४० पद १४१ से १५० पद १५१ से १६० पद १६१ से १७० पद १७१ से १८० पद १८१ से १९० पद १९१ से २०० पद २०१ से २१० पद २११ से २२० पद २२१ से २२९ हिन्दी पदावली - पद १८१ से १९० संत नामदेवजी मराठी संत होते हुए भी, उन्होंने हिन्दी भाषामें सरल अभंग रचना की । Tags : abhangbooknamdevअभंगनामदेवपुस्तक पद १८१ से १९० Translation - भाषांतर १८१राजनाम नीसाण बागा । ताका मरम को जाणै भागा ॥टेक॥बेद विवर्जितो, भेद विवर्जिती । ज्ञान विवर्जित शून्यं ।जोग विवर्जिति जुगती विवर्जिति । ताहा नहीं पाप पुण्यं ॥१॥सोंग विवर्जित भेख विवर्जित । डिंभ विवर्जित लीला ।कहे नामदेव आपहा आप ही । व्याप्य सरीर सकला ॥२॥१८२हीन दीन जात मोरी पंढरी के राया ।ऐसा तुमने नामा दरजी कायक बनाया ॥१॥टाल बिना लेकर नामा राऊल में गाया ।पूजा करते ब्रह्मन उनैन बाहेर ढकाया ॥२॥देवल के पिछे नामा अल्लक पुकारे ।जिदर जिदर नामा उदर देऊलहिं फिरे ॥३॥नाना बर्ण गवा उनका एक बर्ण दूध ।तुम कहां के ब्रह्मन हम कहां के सूद ॥४॥मन मेरी सुई तनो मेरा धागा ।खेचरजी कें चरण पर नामा सिंपी लागा ॥५॥१८३हम तो भूले ठाकुर जानें । तुम कौ गाई झूट दिवाने ॥१॥नाला अप आप सागर हुवा । काहे के कारण रोता है कुवा ॥२॥चंदन के साती लिंब हुवा चंदन । क्यौं कर रोवे देखो ए हिंगन ॥३॥गुरु की मेहेर से नामा भये साधु । देखत रोने लगे जन हे भोंदु ॥४॥१८४राम विठ्ठला । हम तुमारे सेवक ॥१॥बालक बेला माई विठ्ठल बाप विठ्ठल । जाती पाती गुलगोत विठ्ठस (ल) ॥२॥ग्यान विठ्ठल ध्यान विठठल । नामा का स्वामी प्राण विठठल ॥३॥१८५भले बिराजे लंबकनाथ ॥धृ०॥धरणी पाय स्वर्ग लोक माथ । योजन भर के हाथ ॥१॥सिव सनकादीक पार न पावे । अनगन सखा विराजत साथ ॥२॥नामदेव के आपही स्वामी । कीजे मोहि सनाथ ॥३॥१८६रामनाम बीन और नही दूजा । कृष्णदेव की करी पूजा ॥१॥राम ही माई रामही बाप । राम बिना कुणा ठाई पाप ॥२॥संपत्ती विपत्ती रामही होई । राम बिना कुण तारी हे मोही ॥३॥भणत नामा अमृत सार । सुमरी सुमरी उतरे पार ॥४॥१८७पंढरीनाथ विठाई बतावो मुजे पंढरीनाथ विठाई ॥धृ०॥मायबाप के सेवा करीये पुंडलीक भक्त सवाई ।वैकुंठ से विष्णु लाये खडे करकर बतलाई ॥१॥चन्द्रभागा बालबंट पर कबिरा धूम चलाई ।साधुसंत की हो गई गर्दी भजन कुटाई खुब खाई ॥२॥त्रिगुणा में रेनु बजावे सागर का जबाई ।दही दूध की हंडी फुट गई मर मर मुधया पाई ॥३॥नामदेव देके गुरु शिखावें खेचरी मुद्रा गाई ।कृष्ण जी की बार बार गावै हरिनाम बढाई ॥४॥१८८मै को माधव मलमूत्र धारी । मै कहां जानो सेवा तुम्हारी ॥१॥तुम्हरि घर को भांडवी दावत । तुम्हारे घरको आखि कलावत ॥२॥नामदेव कहे देव नीके देवा । सुर नर फुनीग तुम्हारी सेवा ॥३॥१८९तुम बिनु घरि येक रहूं नहि न्यारा । सुन यह केसव नियम हमारा ॥जहाँ तुम गीरीवर ताहां हम मोरा । जहाँ तुम चंदा तहां मैं चकोरा ॥१॥जहाँ तुम तरुवर तहां मैं पछी । जहाँ तुम सरोवर तहां मैं मच्छी ॥२॥जहाँ तुम दिवा तहां मैं बत्ती । जहाँ तुम पंथी तहां मैं साथी ॥३॥जहाँ तुम शिव तहां मैं बेलपूजा । नामदेव कहे भाव नहीं दूजा ॥४॥१९०सावध सावध भज लेरे राजा । नहीं आवे ऐसी घडी जू ॥धृ०॥उत्तम नरतनु पाया रे भाई । गाफल क्यों हुवा दिवाने जू ॥१॥जिन्ने जन्म डारा है तुजकूं । विसर गया उनका ग्यान जू ॥२॥फिर पस्तायेगा दगा पायेगा । निकल जायगा आवसान जू ॥३॥क्या करना सो आजि करले । फिर नहिं ऐसी जोडी जू ॥४॥हंस जायगा पिंजरा पडेगा । तुज कैसा भुल पडी जू ॥५॥सुन्ने का मन्दिर मेहेल बनाया । धन संपत नहिं तेरी जू ॥६॥यामै न और जोरु लडके । सुखके खातर सोर जू ॥७॥अकेले आना अकेले जाना । सब झुटी माया पसरी जू ॥८॥लख चौर्यासी का फेरा आवेगा । तब चुपी बैठे बंदे जू ॥९॥फिरतां फिरतां जीव रमता है बाबा । कोन रखे तेरे तन कूं जू ॥१०॥जिस माया उदरी जन्म लियेगा । तेरे संगत दुख उनकू जू ॥११॥गरमी की यातना सुनले रे भाई । नवमास बंधन डारे जू ॥१२॥नहीं जगा हलने चलने कू बाबा । छडनिकु कोई नहीं आवे जू ॥१३॥आग लगी क्या देख न आंधे । काय के खातर सोया जू ॥१४॥ऐसी बात सुन के नामा सावध हुवा । गुरुके पाव मिठी डारी ॥१५॥मैं आनाथ दुबले शरण सये तुजकू । आब जो मेरी लाज राखी जू ॥१६॥ N/A References : N/A Last Updated : January 02, 2015 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP