सनक n. ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों मे से एक, जो साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है । इसके साथ उत्पन्न हुए ब्रह्मा के अन्य तीन मानसपुत्रों के नाम सनत्कुमार, सनंद, एवं सनातन थे
[भा. २.७.५] ; सनत्कुमार देखिये । ब्रह्मा के ये चारों ही पुत्र, कुमार के रूप में उत्पन्न हुए थे, एवं बालक के समान दिखते थे, जिस कारण इन्हें कुमार कहा जाता था ।
सनक n. विष्णु के एक अवतार के नाते इनका निर्देश विभिन्न पुराणों में प्राप्त है । यह एवं इसके भाई का जन्म से अत्यधिक विरक्त थे, एवं ब्रह्मा के मानसपुत्र होते हुए भी इन्होनें कभी भी प्रजोत्पादन नहीं किया
[पद्म. सृ. ३.] । एक बार यह अपने बंधुओं के साथ वैकुंठ गया, जहाँ जय एवं विजय नामक द्वारपालों ने इसे अंदर जाने से मना किया । इस कारण इसने इस दोनों द्वारपालों को शाप दिया
[भा. ७.१.३५] । गंगा नदी के सीता नामक नदी के तट पर इसका नारद के साथ तत्त्वज्ञान पर संवाद हुआ था
[नारद. १.१-२] । पारस्कर गृह्यसूत्रों के तर्पण में इसका एवं सनत्कुमार को छोड़ कर इसके अन्य दो भाइयों का निर्देश प्राप्त हैं, एवं ये कंक नामक शिवावतार के शिष्य बताये गये है । निंबार्कके द्वारा प्रणीत कृष्ण एवं राधा के उपासना सांप्रदाय, ‘सनक सांप्रदाय’ नाम से सुविख्यात है, जहाँ सनक के रूप में ही कृष्ण की पूजा की जाती है (राधा देखिये) । इसके नाम पर ‘सनकसंहिता’ नामक एक ग्रंथ भी उपलब्ध है, जिसमें इसे भृगुकुलोत्पन्न कहा गया है ( C.C.) । इससे प्रतीत होता है कि, इस ग्रंथ की रचना करनेवाला आचार्य स्वयं यह न हो कर, इसकी उपासना करनेवाला अन्य कोई ऋषि था ।
सनक (काप्य) n. एक आचार्य, जो काप्य नामक आचार्य द्वयों में से एक था । इसके साथी दूसरे आचार्य का नाम नवक था । इन दोनों ने विभिन्दुकियों के यज्ञ में भाग लिया था
[जै. ब्रा. ३.२३३] । लुडविग के अनुसार, ऋग्वेद में भी एक यज्ञकर्ता आचार्यद्वय के रूप में इनका निर्देश प्राप्त है
[ऋ. १.३३.४] । किन्तु इस संबंध में निश्चितरूप से कहना कठिन है ।
सनक II. n. एक असुर गण, जो वृत्र का अनुयायी था
[ऋ. १. ३३.४] ।