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मरीचि n. इक्कीस प्रजापतियों में से एक, जो स्वायंभुव मन्वन्तर में ब्रह्माजी के नेत्र से उत्पन्न हुआ था [म.आ.३२१.३३] । यह ब्रह्माजी की सभा में रह कर उनकी उपासना करता था [म.स.११.१४] । यह ब्रह्माजी का प्रथम पुत्र था । इसे विष्णु ने खङ्ग दिया था, जिसे इसने अन्य महर्षियों को दिया था [म.शां.१६०.६५] । यह दक्ष का जामाद तथा शंकर का साढू था । इसने शंकर का अपमान किया था, तब शंकर ने इसे भस्म कर डाला । दक्ष की कन्या संभूति इसकी पत्नी थी । इसे संभूति से पूर्णमास नामक पुत्र, तथा कृष्टि, वृष्टि, त्विषा तथा उपचिति नामक कन्याएँ हुई । पूर्णमास को सरस्वती से विरुज, पर्वश, यजुर्धान आदि पुत्र उत्पन्न हुए [ब्रह्मांड २.११] । भागवत के अनुसार इसकी दो पत्नियॉं थीं [भा.३.२४.२२] । उसमें से एक नाम कर्दमकन्या कला, तथा दूसरी का नाम ऊर्णा था । इसे कला से दो पुत्र हुए, एक कश्यप तथा दूसरा पूर्णिमा । ऊर्णा से इसे स्मर, उद्गीथ, परिष्वंग, क्षुद्रमृत तथा घृणी सन्ताने हुयीं [भा.१०.८५, ४७-५१] ;[दे. भा.४.२२] । अग्निष्वात्त नामक पितर भी इसका पुत्र था । वैवस्वत मन्वन्तर में ब्रह्मदेव ने इसे अग्नि से पैदा किया था । उस समय इसे कश्यप नामक पुत्र एवं सुरुपा नामक कन्या हुयी थी । यह इसका पुत्र कश्यप, एवं अवत्सार, असित, नैध्रुव, नित्य तथा देवल ये कश्यप कुलके सात मंत्रद्रष्टा थे (मत्स्य.१४४, कश्यप देखिये) । यह प्रजापति भी था [वायु.६५.६७] । इन्द्रप्रस्थ में सात तीर्थो में स्नान करने के कारण, इसे सात पुत्र हुए थे [पद्म.उ.२.२२] । महाभारत के अनुसार, ‘चित्रशिखण्डी’ कहे जाने बाले ऋषियों में से यह भी एक था । यह आठ प्रकृतियों में भी गिना जाता है [म.शां.३२२.२७] । यह शरशय्या पर पडे हुए, भीष्म के पास मिलने गया था, एवं अर्जुन के जन्मोत्सवमें भी उपस्थित था ।
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मरीचिः [marīciḥ] (Rarely मरीची also) m. f. [मृ-ईचि [Uṇ.4.7] ]
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A ray of light; न चन्द्रमरीचयः [V.3.1;] सवितुर्मरीचिभिः [Ṛs.1.16;] [R.9.13;13.4.]
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A particle of light.
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