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कुहू
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धर्मसिंधु - सिनीवाली व कुहू जननशान्ति
हिंदूंचे ऐहिक, धार्मिक, नैतिक अशा विषयात नियंत्रण करावे आणि त्यांना इह-परलोकी सुखाची प्राप्ती व्हावी ह्याच अत्यंत उदात्त हेतूने प्रेरित होउन श्री. काशीनाथशास्त्री उपाध्याय यांनी ’धर्मसिंधु’ हा ग्रंथ रचला आहे. This 'Dharmasindhu' grantha was written by Pt. Kashinathashastree Upadhyay, in the year 1790-91.
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कुहू कुहू गर्नु
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कुहू-कंठ
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कुहू-मुख
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कुहू-रव
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कुहूँ
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बडबडगीत - झाडाच्या फांदीवर गाते ...
मुलांना शब्दांचा अर्थ कळ्ण्यापूर्वीच बडबडगीतांच्या स्वरांची भाषा समजू लागते.
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एकानेका
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कुया
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कुहूकण्ठ
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कुहूरव
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सिनीवालीकुहूशान्ति
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गुङ्गु
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एकानंशा
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भावगंगा - पांडुरंग आले आले
स्वाध्याय-प्रेमाने तुडुंब भरून वाहणारी ही भावगंगा आहे.
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बालगीत - पंखसुंदर प्रवासी निळ्या आ...
निळ्या आभाळवाटांनी पंख पसरुन एकेकटयाने किंवा थव्यांनी उडणारे पक्षी पाहताना मुलांच्या मनात येते, ’आपणही असे पंख पसरुन वार्यावर स्वार व्हावे.’
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मधमाशी आणि कोकिळा
इसापने रचलेल्या गोष्टी केवळ उपदेशपर नसून अत्यंत रंजक आहेत.
Many stories included in Aesop's Fables, are distinguished by its own special characteristics and moral.
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सायम्
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देविका
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हविष्मत्
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प्रथम परिच्छेद - पौर्णिमा व अमावास्या
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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वराहपुराणम् - अध्यायः ८५
'वराह पुराण' हे एक वैष्णव पुराण आहे. या पुराणातील श्लोकांत भगवानांच्या वराह अवतारातील धर्मोपदेश कथांच्या रूपात प्रस्तुत केलेला आहे.
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जननशांत्यादयः - सिनीवालीकुहूजननशांतिः
‘कृत्य दिवाकरः’ या ग्रंथाद्वारे शास्त्रोक्त पूजा पाठ कसे करावेत याचे ज्ञान मिळते.
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तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २०
रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.
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माघ कृष्णपक्ष व्रत - माघी अमा
व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।
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विनय पत्रिका - विनयावली ४
विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।
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द्वितीय पटल - तत्त्वज्ञानोपदेश १
महायोगी आदिनाथ श्रीमहादेव विरचित " शिवसंहिता " हा ग्रंथ देवी पार्वतीने विचारलेले प्रश्न व त्या प्रश्नांना श्रीशिवांनी दिलेली उत्तरे या प्रश्नोत्तरांच्या रूपाने अवतरित झाला आहे.
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देवी स्तोत्र - श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
देवी आदिशक्ती माया आहे. तिची अनेक रूपे आहेत. जसे ती जगत्कल्याण्कारी तसेच दुष्टांचा संहार.करणारीही आहे.
The concept of Supreme mother Goddess is very old in India. The divine mother has been worshipped as ' Shakti' since vedic times
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साय
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पौष अमावस्या
Pausha Amavasya
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श्रीकृष्ण माधुरी - पद ९१ से ९५
इस पदावलीके संग्रहमें भगवान् श्रीकृष्णके विविध मधुर वर्णन करनेवाले पदोंका संग्रह किया गया है, तथा मुरलीके मादकताका भी सरस वर्णन है ।
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अवन्तीस्थचतुरशीतिलिङ्गमाहात्म्यम् - अध्याय ४२
भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे.
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अनुच्चारित अनुस्वार - लिंगविचार
व्याकरण हा भाषेचा पाया आहे.
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प्रथम परिच्छेद - श्राद्धाविषयीं अमावास्येचा निर्णय
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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धातृ
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धर्मारण्य खण्डः - अध्याय २७
भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे.
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स्कंध ६ वा - अध्याय १८ वा
सर्वमतखंडन आणि ब्रह्मविद्यारहस्य
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नागरखण्डः - अध्याय ४६
भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) ने कथन केल्यामुळे ह्या पुराणाचे नाव 'स्कन्दपुराण' आहे.
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प्रथम खण्डः - एकचत्त्वारिंशतत्तमोऽध्यायः
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे.
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खण्डः १ - अध्यायः ०४१
विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण आहे. अधिक माहितीसाठी प्रस्तावना पहा.
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प्रथम पाद - तिथियोंका निर्णय
` नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
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अरण्यकाण्ड - दोहा ३१ से ४०
गोस्वामी तुलसीदासजीने रामचरितमानस ग्रन्थकी रचना दो वर्ष , सात महीने , छ्ब्बीस दिनमें पूरी की। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में रामविवाहके दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।
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तिथिप्रकरण
ज्योतिष हा विषय वेदांइतकाच प्राचीन आहे .
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अंगिरस्
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श्रद्धा
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खंड २ - अध्याय ६
मुद्गल पुराणात श्री गणेशाच्या आठ अवतारांचे वर्णन आहे.
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नववत्सरप्रथमं दिने सर्वापच्छान्तिकरमहशान्तिवर्णनम्
नीलमत पुराण अंदाजे सहाव्या ते आठव्या शतकातील ग्रंथ आहे, यात कश्मीरमधील इतिहास, भूगोल, धर्म आणि लोकगाथांबद्दल विपुल माहीती आहे.
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श्रीवामनपुराण - अध्याय १३
श्रीवामनपुराणकी कथायें नारदजीने व्यासको, व्यासने अपने शिष्य लोमहर्षण सूतको और सूतजीने नैमिषारण्यमें शौनक आदि मुनियोंको सुनायी थी ।
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श्रीनरसिंहपुराण - अध्याय ५
अन्य पुराणोंकी तरह श्रीनरसिंहपुराण भी भगवान् श्रीवेदव्यासरचित ही माना जाता है ।
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