हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग २० तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २० रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग २० Translation - भाषांतर क्षमाका महत्वछमा रोष के दोष गुन सुनि मनु मानहिं सीख ।अबिचल श्रीपति हरि भए भूसुर लहै न भीख ॥कौरव पांडव जानिऐ क्रोध छमा के सीम ।पाँचहि मारि न सौ सके सयौ सँघारे भीम ॥क्रोधकी अपेक्षा प्रेमके द्वारा वश करना ही जीत हैबोल न मोटे मारिऐ मोटी रोटी मारु ।जीति सहस सम हारिबो जीतें हारि निहारु ॥जो परि पायँ मनाइए तासों रूठि बिचारि ।तुलसी तहाँ न जीतिऐ जहँ जीतेहूँ हारि ॥जूझे ते भल बूझिबो भली जीति तें हार ।डहकें तें डहकाइबो भलो जो करिअ बिचार ॥जा रिपु सों हारेहुँ हँसी जिते पाप परितापु ।तासों रारि निवारिऐ समयँ सँभारिअ आपु ॥जो मधु मरै न मारिऐ माहुर देइ सो काउ ।जग जिति हारे परसुधर हारि जिते रघुराउ ॥बैर मूल हर हित बचन प्रेम मूल उपकार ।दो हा सुभ संदोह सो तुलसी किएँ बिचार ॥रोष न रसना खोलिऐ बरु खोलिअ तरवारि ।सुनत मधुर परिनाम हित बोलिअ बचन बिचारि ॥मधुर बचन कटु बोलिबो बिनु श्रम भाग अभाग ।कुहू कुहू कलकंठ रव का का कररत काग ॥पेट न फूलत बिनु कहें कहत न लागइ ढेर ।सुमति बिचारें बोलिऐ समुझि कुफेर सुफेर ॥वीतराग पुरुषोंकी शरण ही जगत के जंजालसे बचनेका उपाय हैछिद्यो न तरुनि कटाच्छ सर करेउ न कठिन सनेहु ।तुलसी तिन की देह को जगत कवच करि लेहु ॥शूरवीर करनी करते है,कहते नहींसूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु ।बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥अभिमान के बचन कहना अच्छा नहींबचन कहे अभिमान के पारथ पेखत सेतु ।प्रभु तिय लूटत नीच भर जय न मीचु तेहिं हेतु ॥दीनोंकी रक्षा करनेवाला सदा बिजयी होता हैराम लखन बिजई भए बनहुँ गरीब निवाज ।मुखर बालि रावन गए घरहीं सहित समाज ॥नीतिका पालन करनेवालेके सभी सहायक बन जाते हैंखग मृग मीत पुनीत किय बनहुँ राम नयपाल ।कुमति बालि दसकंठ घर सुहद बंधु कियो काल ॥सराहनेयोग्य कौन हैलखइ अघानो भूख ज्यों लखइ जीतिमें हारि ।तुलसी सुमति सराहिऐ मग पग धरइ बिचारि ॥अवसर चूक जानेसे बड़ी हानि होती हैलाभ समय को पालिबो हानि समय की चूक ।सदा बिचारहिं चारुमति सुदिन कुदिन दिन दूक ॥समयका महत्वसिंधु तरन कपि गिरि हरन काज साइँ हित दोउ ।तुलसी समयहिं सब बड़ो बूझत कहुँ कोउ कोउ ॥तुलसी मीठी अमी तें मागी मिलै जो मीच ।सुधा सुधाकर समय बिनु काललकूट तें नीच ॥विपत्तिकालके मित्र कौन है ?तुलसी असमय के सखा धीरज धरम बिबेक ।साहित साहस सत्यब्रत राम भरोसो एक ॥समरथ कोउ न राम सों तीय हरन अपराधु ।समयहिं साधे काज सब समय सराहहिं साधु ॥तुलसी तीरहु के चलें समय पाइबी थाह ।धाइज न जाइ थहाइबी सर सरिता अवगाह ॥होनहारकी प्रबलतातुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ ।आपुनु आवइ ताहि पै ताहि तहाँ लै जाइ ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP