हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग २३ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २३ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग २३ Translation - भाषांतर प्रतिष्ठा दुःखका मूल हैमागि मधुकरी खात ते सोवत गोड़ पसारि ।पाप प्रतिष्ठा बढ़ि परी ताते बाढ़ी रारि ॥तुलसी भेड़ी की धँसनि जड़ जनता सनमान ।उपजत ही अभिमान भो खोवत मूढ़ अपान ॥भेड़ियाधँसानका उदाहरणलही आँखि कब आँधरे बाँझ पूत कब ल्याइ ।कब कोढ़ी काया लही जग बहराइच जाइ ॥ऐश्वर्य पाकर मनुष्य अपनेको निडर मान बैठते हैंतुलसी निरभय होत नर सुनिअत सुरपुर जाइ ।सो गति लखि ब्रत अछत तनु सुख संपति गति पाइ ॥तुलसी तोरत तीर तरु बक हित हंस बिडारि ।बिगत नलिन अलि मलिन जल सुरसरिहू बढ़िआरि ॥अधिकरी बस औसरा भलेउ जानिबे मंद ।सुधा सदन बसु बारहें चउथें चउथिउ चंद ॥नौकर स्वामीकी अपेक्षा अधिक अत्याचारी होते हैत्रिबिध एक बिधि प्रभु अनुग अवसर करहिं कुठाट ।सूधे टेढ़े सम बिषम सब महँ बारहबाट ॥प्रभु तें प्रभु गन दुखद लखि प्रजहिं सँभारै राउ ।कर तें होत कृपानको कठिन घोर घन घाउ ॥ब्यालहु तें बिकराल बड़ ब्यालफेन जियँ जानु ।वहि के खाए मरत है वहि खाए बिनु प्रानु ॥कारन तें कारजु कठिन होइ दोसु नहिं मोर ।कुलिस अस्थि तें उपल तें लोह कराल कठोर ॥काल बिलोकत ईस रुख भानु काल अनुहारि ॥रबिहि राउ राजहिं प्रजा बुध ब्यवहरहिं बिचारि ॥जथा अमल पावन पवन पाइ कुसंग सुसंग ।कहिअ कुबास सुबास तिमि काल महीस प्रसंग ॥भलेहु चलत पथ पोच भय नृप नियोग नय नेम ।सुतिय सुभूपति भूषिअत लोह सँवारित हेम ॥राजाको कैसा होना चाहिये ?माली भानु किसान सम नीति निपुन नरपाल ।प्रजा भाग बस होहिंगे कबहुँ कबहुँ कलिकाल ॥बरषत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ ।तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ ॥राजनीतिसुधा सुजान कुजान फल आम असन सम जानि ।सुप्रभु प्रजा हित लेहिं कर सामादिक अनुमानि ॥पाके पकए बिटप दल उत्तम मध्यम नीच ।फल नर लहैं नरेस त्यों करि बिचारि मन बीच ॥रीझि खीझि गुरु देत सिख सखा सुसाहिब साधु ।तोरि खाइ फल होइ भल तरु काटें अपराधु ॥धरनि धेनु चारितु चरत प्रजा सुबच्छ पेन्हाइ ।हाथ कछू नहिं लागिहै किएँ गोड़ कि गाइ ॥चढ़े बधूरें चंग ज्यों ग्यान ज्यों सोक समाज ।करम धरम सुख संपदा त्यों जानिबे कुराज ॥कंटक करि करि परत गिरि साखा सहस खजूरि ।मरहिं कृनृप करि करि कुनय सों कुचालि भव भूरि ॥काल तोपची तुपक महि दारू अनय कराल ।पाप पलीता कठिन गुरु गोला पुहुमी पाल ॥किसका राज्य अचल हो जाता है ?भूमि रुचिर रावन सभा अंगद पद महिपाल ।धरम राम नय सीय बल अचल होत सुभ काल ॥प्रीति राम पद नीति रति धरम प्रतीति सुभायँ ।प्रभुहि न प्रभुता परिहरै कबहुँ बचन मन कायँ ॥कर के कर मन के मनहिं बचन बचन गुन जानि ।भूपहि भूलि न परिहरै बिजय बिभूति सयानि ॥गोली बान सुमंत्र सर समुझि उलटि मन देखु ।उत्तम मध्यम नीच प्रभु बचन बिचारि बिसेषु ॥सत्रु सयानो सलिल ज्यों राख सीस रिपु नाव ।बूड़त लखि पग डगत लखि चपरि चहूँ दिसि घाव ॥रैअत राज समाज घर तन धन धरम सुबाहु ।सांत सुसचिवन सौंपि सुख बिलसइ नित नरनाहु ॥मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक ॥सेवक कर पद नयन से मुख सो साहिबु होइ ।तुलसी प्रीति कि रीति सुनि सुकबि सराहहिं सोइ ॥सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।राज धर्म तन तीनी कर होइ बेगिहीं नास ॥रसना मन्त्री दसन जन तोष पोष निज काज ।प्रभु कर सेन पदादिका बालक राज समाज ॥लकड़ी डौआ करछुली सरस काज अनुहारि ।सुप्रभु संग्रहहिं परिहरहिं सेवक सखा बिचारि ॥प्रभु समीप छोटे बड़े रहत निबल बलवान ।तुलसी प्रगट बिलोकिऐ कर अँगुली अनुमान ॥आज्ञाकारी सेवक स्वामी से बड़ा होता हैसाहब तें सेवक बड़ो जो निज धरम सुजान ।राम बाँधि उतरे उदधि लाँघि गए हनुमान ॥मूलके अनुसार बढ़नेवाला और बिना अभिमान कियेसबको सुख देनेवाला पुरुष ही श्रेष्ठ हैतुलसी भल बरतरु बढ़त निज मूलहिं अनुकुल ।सबहि भाँति सब कहँ सुखद दलनि फलनि बिनु फूल ॥त्रिभुवनके दीप कौन है ?सघन सगुन सधरम सगन सबल सुसाइँ महीप ।तुलसी जे अभिमान बिनु ते तिभुवन के दीप ॥कीर्ति करतूतिसे ही होती हैतुलसी निज करतूति बिनु मुकुत जात जब कोइ ।गयो अजामिल लोक हरि नाम सक्यो नहिं धोइ ॥बड़ो का आश्रय भी मनुष्यको बड़ा बना देता हैबड़ो गहे ते होत बड़ ज्यों बावन कर दंड ।श्रीप्रभु के सँग सों बढ़ो गयो अखिल ब्रह्मंड ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP