हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|तुलसीदास कृत दोहावली| भाग ७ तुलसीदास कृत दोहावली भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ भाग ८ भाग ९ भाग १० भाग ११ भाग १२ भाग १३ भाग १४ भाग १५ भाग १६ भाग १७ भाग १८ भाग १९ भाग २० भाग २१ भाग २२ भाग २३ भाग २४ भाग २५ तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ७ रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत. Tags : dohavalidohetulsidasतुलसीदासदोहावलीदोहे भाग ७ Translation - भाषांतर रामप्रेमकी प्राप्ति सुगम उपायसूधे मन सूधे बचन सूधी सब करतूति ।तुलसी सूधी सकल बिधि रघुबर प्रेम प्रसूति ॥रामप्राप्तिमें बाधकबेष बिसद बोलनि मधुर मन कटु करम मलीन ।तुलसी राम न पाइऐ भएँ बिषय जल मीन ॥बचन बेष तें जो बनइ सो बिगरइ परिनाम ।तुलसी मन तें जो बनइ बनी बनाई राम ॥राम अनुकूलतामें ही कल्याण हैनीच मीचु लै जाइ जो राम रजायसु पाइ ।तौ तुलसी तेरो भलो न तु अनभलो अघाइ ॥श्रीरामकी शरणागतवत्सलताजाति हीन अघ जन्म महि मुक्त कीन्हि असि नारि ।महामंद मन सुख चहसि ऐसे प्रभुहि बिसारि ॥बंधु बधू रत कहि कियो बचन निरुत्तर बालि ।तुलसी प्रभु सुग्रीव की चितइ न कछू कुचालि ॥बालि बली बलसालि दलि सखा कीन्ह कपिराज ।तुलसी राम कृपालु को बिरद गरीब निवाज ॥कहा बिभीषन लै मिल्यो कहा बिगार्यो बालि ।तुलसी प्रभु सरनागतहि सब दिन आए पालि ॥तुलसी कोसलपाल सो को सरनागत पाल ।भज्यो बिभीषन बंधु भय भंज्यो दारिद काल ॥कुलिसहु चाहि कठोर अति कोमल कुसुमहु चाहि ।चित्त खगेस राम कर समुझि परइ कहु काहि ॥बलकल भूषन फल असन तृन सज्या द्रुम प्रीति ।तिन्ह समयन लंका दई यह रघुबर की रीति ॥जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ ।सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ ॥अबिचल राज बिभीषनहि दीन्ह राम रघुराज ।अजहुँ बिराजत लंक पर तुलसी सहित समाज ॥कहा बिभीषन लै मिल्यो कहा दियो रघुनाथ ।तुलसी यह जाने बिना मूढ़ मीजिहैं हाथ ॥बैरि बंधु निसिचर अधम तज्यो न भरें कलंक ।झूठें अघ सिय परिहरी तुलसी साइँ ससंक ॥तेहि समाज कियो कठिन पन जेहिं तौल्यो कैलास ।तुलसी प्रभु महिमा कहौं सेवक को बिस्वास ॥सभा सभासद निरखि पट पकरि उठायो हाथ ।तुलसी कियो इगारहों बसन बेस जदुनाथ ॥त्राहि तीनि कह्यो द्रौपदी तुलसी राज समाज ।प्रथम बढ़े पट बिय बिकल चहत चकित निज काज ॥सुख जीवन सब कोउ चहत सुख जीवन हरि हाथ ।तुलसी दाता मागनेउ देखिअत अबुध अनाथ ॥कृपन देइ पाइअ परो बिनु साधें सिधि होइ ।सीतापति सनमुख समुझि जौ कीजै सुभ सोइ ॥दंडक बन पावन करन चरन सरोज प्रभाउ ।ऊसर जामहिं खल तरहिं होइ रंक ते राउ ॥बिनहिं रितु तरुबर फरत सिला द्रवहि जल जोर ।राम लखन सिय करि कृपा जब चितवत जेहि ओर ॥सिला सुतिय भइ गिरि तरे मृतक जिए जग जान ।राम अनुग्रह सगुन सुभ सुलभ सकल कल्यान ॥सिला साप मोचन चरन सुमिरहु तुलसीदास ।तजहु सोच संकट मिटिहिं पूजहि मनकी आस ॥मुए जिआए भालु कपि अवध बिप्रको पूत ।सुमिरहु तुलसी ताहि तू जाको मारुति दूत ॥प्रार्थनाकाल करम गुन दोर जग जीव तिहारे हाथ ।तुलसी रघुबर रावरो जानु जानकीनाथ ॥रोग निकर तनु जरठपनु तुलसी संग कुलोग ।राम कृपा लै पालिऐ दीन पालिबे जोग ॥मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर ।अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥भव भुअंग तुलसी नकुल डसत ग्यान हरि लेत ।चित्रकूट एक औषधी चितवत होत सचेत ॥हौंहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास ।साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥ N/A References : N/A Last Updated : January 18, 2013 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP