सुपर्ण (काण्व) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. ८.५९] ।
सुपर्ण (तार्क्ष्य) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. १०.११४] ।
सुपर्ण II. n. एक ऋषि, जिसने इंद्रियसंयम, एवं मनोनिग्रह के साथ तपश्र्चर्या की थी । उस तपस्या के कारण इसे स्वयं भगवान् पुरुषोत्तम ने सात्वत धर्म का ज्ञान सिखाया, जो इसने आगे चल कर वायुदेव को प्रदान किया
[म. शां. ३३६.१८-२१] ।
सुपर्ण II. n. महाभारत के अनुसार, भगवान् पुरुषोत्तम से उपर्युक्त धर्मज्ञान की प्राप्ति इसे ब्रह्मा के तीसरे ‘वाचिक-युगांतर’ में हुई थी । स्वयं को प्राप्त हुए धर्म का यह तीन बार पठन करता था, जिस कारण उस धर्म को ‘त्रिसौपर्ण’ नाम प्राप्त हुआ। दिन में तीन बार धर्मज्ञान का पठन करने के इसी व्रत का निर्देश ऋग्वेद में ‘चतुष्कपर्दा युवतिः’ आदि ऋचाओं में किया गया है
[ऋ. १०.११४. २-३] ।
सुपर्ण III. n. पक्षिराज गरुड़ का नामांतर । वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में सर्वत्र सुपर्ण एवं गरुड के द्वारा क्रमशः सोम एवं अमृत प्राप्त कराने का निर्देश मिलता है । इन सारी कथाओं का मूल स्तोत्र एक ही है, जहाँ सूर्य के द्वारा प्राप्त नवचैतन्य को अमृत सोम माना गया है
[श. ब्रा. १०.२.२.४] ।
सुपर्ण IV. n. एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं प्राधा के पुत्रों में से एक था
[म. आ. ५९.४५] ।
सुपर्ण V. n. एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं मुनि के पुत्रों में से एक
[म. आ. ५९.४१] ।
सुपर्ण VI. n. मयूर नामक असुर का छोटा भाई, जो कालकीर्ति राजा के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था ।
सुपर्ण VII. n. (सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो अंतरिक्ष राजा का पुत्र, एवं अमित्रजित् राजा का पिता था
[वायु. ९९.२८६] ।
सुपर्ण VIII. n. सुधामन् देवों में से एक ।