रेणुका n. इक्ष्वाकुवंशीय रेणु (प्रसेनजित्) राजा की कन्या, जो जमदग्नि महर्षि की पत्नी थी
[भा. ९.१५.२] ;
[ह. वं. १.२७.३८] ;
[म. व. ११६.२] । कई अन्य ग्रंथों में इसे अनावसु की, एवं विकल्य में सुवेणु की कन्या कहा गया है
[रेणु. ५] । कालिका पुराण में इसे विदर्भ राजा की कन्या कहा गया है
[कालि. ८६] । इसे कामली नामान्तर भी प्राप्त था ।
रेणुका n. महाभारत के अनुसार, इसकी उत्पत्ति कमल में हुई थी, एवं इसके पिता एवं भ्राता का नाम क्रमशः सोंप एवं रेणु था
[म. अनु. ५३.२७] । सोंप राजा के द्वारा इसका पालन होने कारण, संभवत: उसे इसका पिता कहा होगा । रेणुकापुराण के अनुसार, रेणु राजा ने कन्याकामेष्टियज्ञ किया । उस यज्ञकुण्ड से इसकी उत्पत्ति हुई
[रेणु. ३] । अपने पूर्वजन्म में यह अदिति थी । इसका स्वयंवर भागीरथी क्षेत्र में हुआ, जिस समय इसने स्वयंवर के समय इंद्र ने इसे कामधेनु, कल्यतक, चिंतामणि एवं पारत्स आदि विभिन्न मौल्यवान चीजे भेंट में दे दी
[रेणु. १३] । एक बार जमदग्नि ऋषि बाणक्षेपण का खेल खेल रहे थे, जिस समय बाण वापस लाने का काम इस पर सौंपा, गया था । एकबार बाण लाने में इसे कुछ देरी हो गयी जिस कारण क्रुद्ध हो कर जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम से इसका शिरच्छेद करने के लिए कहा
[म. अन्. ९५. ७-१७] । अपने पिता की आज्ञानुसार, परशुराम ने इसका वध किया, एवं पश्चात जमदग्नि से अनुरोध कर इसे पुनर्जीवित कराया
[म. व. ११६.५-१८] ।
रेणुका n. इसे निम्नलिखित पाँच पुत्र थे:--- रुमण्वत्, सुषेण, वसु, विश्वावसु एवं परशुराम
[म. व. ११६. १०-११] । रेणुकापुराण में ’ रुमण्वत्’ एवं ‘सुषेण’ के बदले पुत्रों के नाम ‘बृहत्मानु’ एवं ‘बृहत्कर्मन्’ दिये गयें हैं (रेणू. १३) । कलिका पुराण में ‘रुपण्वत्’ के बदले ‘मरुत्वत्’ नाम प्राप्त है
[कालि, ८६] ।