आरुणि n. उद्दालक का पैतृक नाम
[बृ. उ. ३.६.१] ;
[छां. उ. ३.११.४] । सुब्रह्मण्य का गुरु आरुणि यशस्विन् यही है
[जै. ब्रा.२.८०] । आरुणि ने हृदय के अष्टदलयुक्त कमल के स्थान ब्रह्मदृष्टि रख कर ब्रह्मा की आराधना की
[ऐ.आ.२.१४] । वायुमतानुसार यजुःशिष्यपरंपराके व्यास का मध्यपदेश का शिष्य (व्यास देखिये) । यह वासिष्ठ चैकितायन के पास ज्ञानार्जन के लिये गया था
[जै. उ. ब्रा.१.४२.१] । अन्य स्थान में, अग्नि उध्वर्यु का नाश न कर शत्रु का नाश करता है, यह बताने के लिये इसके नाम का उल्लेख आता है
[श. ब्रा. २.३.३१] । आरुणि पांचाल्य का उद्दालक भी नाम है (उद्दालक देखिये) ।
आरुणि (पांचाल्य) n. उद्दालक देखिये ।
आरुणि II. n. धर्मसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में एक ।
आरुणि III. n. विनता का पुत्र ।
आरुणि IV. n. सर्प
[म.आ.५२.१७] ।
आरुणि V. n. एक व्यास (व्यास देखिये) ।