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नाग n. कश्यप तथा कद्रू का पुत्र । यह मेरुकर्षिका नामक स्थान पर रहता था [भा.५.१६.२६] । यह वरुण की सभा का सभासद था [म.स.९.८] ; सर्प देखिये । नाग II. n. प्राचीन मानव जातियों में से एक । दक्षकन्या कद्रू को कश्यप ऋषि से एक सहस्त्र सर्प पैदा हुएँ । उन पुत्रों से ही आगे चल कर, नागजाति के लोग निर्माण हुएँ । कश्यप के नागपुत्रों में निम्नलिखित नग प्रमुख थेः--अनन्त, वासुकि, तक्षक,कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख तथा कलिक। एक बार ये प्रजा को बहुत कष्ट देने लगे । फिर ब्रह्म देव ने इन्हें शाप दिया, ‘जनमेजय के सर्पसत्र के द्वारा, एवं तुम्हारे सापत्न बंधु गरुड के द्वारा तुम्हारा नाश होगा’। शरण आने पर ब्रह्मदेव ने इन्हें उःशाप दिया, एवं एक सुरक्षित स्थान इनके लिये नियुक्त कर, वहॉं रहने के लिये इन्हे कहा । वहॉं ‘नागतीर्थ’ निर्माण हुआ । जिस दिन ये ब्रह्मदेव से मिलने गये, वह सावन माह के पंचमी का दिन था । नागमुक्ति का दिन होने के कारण, वह दिन ‘नागपंचमी’ नाम से प्रसिद्ध हुआ [पद्म सृ.३१] । प्रमुख नागपुत्रों के बारे में पुराणों में प्राप्त जानकारी नीचे दे गई हैः--- १ नाम - अनंत वर्ण - ब्राह्मण रंग - शुक्ल दृष्टि - सामने दिशा - पूर्व चिन्ह - पद्म २ नाम - वासुकि वर्ण - क्षत्रिय रंग - आरक्त दृष्टि - बायीं ओर दिशा - आग्नेय चिन्ह - उत्पल ३ नाम - तक्षक वर्ण - वैश्य रंग - पीत दृष्टि - दायी ओर दिशा - दक्षिण चिन्ह - स्वस्तिक ४ नाम - कर्कोटक वर्ण - शूद्र रंग - कृष्ण दृष्टि - पीछे दिशा - नैऋत्य चिन्ह - कमल ५ नाम - पद्म ( नाभ ) वर्ण - शूद्र रंग - कृष्ण दृष्टि - चंचल दिशा - पश्चिम चिन्ह - पद्म ६ नाम - महापद्म वर्ण - वैश्य रंग - पीत दृष्टि - नीचे दिशा - वायव्य चिन्ह - शूल ७ नाम - शंखपाल वर्ण - क्षत्रिय रंग - आरक्त दृष्टि - बार बार निश्चेष्टित दिशा - उत्तर चिन्ह - छत्र ८ नाम - कुलिक ( कंबल ) वर्ण - ब्राह्मण रंग - शुक्ल दृष्टि - सर्वत्र ( कपिल ) दिशा - ईशान्य चिन्ह - अर्धचन्द्र इन नागों के दंश आदि की विस्तृत जानकारी भविष्य पुराण में दी गयी है [भवि. ब्रह्म.३३-३६] । नाग II. n. जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुएँ, वंश एवं नागों की विस्तृत नामावलि ‘महाभारत’ में दी गयी है । उन में से प्रमुख नागवंश एवं नागों के नाम इस प्रकार है । वासुकिवंश--- कोटिक, मानस, पूर्ण, सह, पैल, हलीसक, पिच्छिल, कोणप, चक्र, कोणवेग, प्रकालन, हिरण्यावाह, शरण, कक्षक, कालदन्त [म.आ.५२.५-६] । तक्षकवंश--- पुच्छण्ड्क, मण्डलक, पिंडभेतृ, रभेणक, उच्छिख, सुरस, द्रड, बलहेड, विरोहण, शिलीशिलकर, मूक, सुकुमार, प्रवपन, मुद्नर, शशरोमन्, सुमनस्, वेगवाहन [म.आ.५२.७-९] । ऐरावतवंश--- पारिवात, पारिमात्र, पाण्डर, हरिण, कृश, विहंग, मोद, प्रमोद, संहतांङ्ग, [म.आ.५२.१०] । कौरव्यवंश--- ऐण्डिल, कुण्डल, मुण्ड, वेणिस्कन्ध, कुमारक, बाहुक, शृङ्गवेग, धूर्तक, पात, पातर [म.आ.५२.१२] । धृतराष्ट्रवंश--- शङ्कुकर्ण, पिङ्गलक, कुठारमुख, पेचक, पूर्णाङ्गद, पूर्णमुख, प्रहस, शकुनि, हरि, अमाठक, कोमठक, श्वसन, मानव, वट, भैरव, मुण्डवेगाङ्ग, पिशङ्ग, उद्रपारथ, ऋषभ, वेगवत्, पिण्डारक, महाहनु, रक्ताङ्ग, सर्वासारङ, समृद्ध, पाट, राक्षस, वराहक,,वारणक,सुमित्र,चित्रवेदिक,पराशर,तरुणक,मणिस्कन्ध,आरुणि[म.आ.अ५२.१४-१७] । नाग II. n. नागों के तीन प्रमुख निवासस्थानों का निर्देश महाभारत में प्राप्त है । वे स्थान इस प्रकार हैः--- (१) नागलोक---यह नागों का प्रमुख निवासस्थान था [म.उ.९७.१] । नागराज वासुकि इस देश के राजा थे । इस लोक की स्थिति भूतल से हजारो योजन दूर थी [म.आश्व.५७.३३] । यह लोक सहस्त्र योजन विस्तृत था । (२) नागधन्वतीर्थ---सरस्वती नदी के तटवती एक प्राचीन तीर्थ, जहॉं नागराज वासुकि का निवासस्थान था । यही उसकी नागराज के पद पर अभिषेक हुआ था । (३) नागपुर---नैमिषारण्य में गोमती नदी के तट पर स्थित एक नगर, जहॉं पद्मनाभ नामक नाग का निवासस्थान था (म.शां.३४३.२-४०। नाग III. n. मथुरा का एक राजवंश (भोगिन् देखिये) ।
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