मुर n. एक दैत्य, जो ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए तालजंघ नामक दैत्य का पुत्र था । इसकी राजधानी चंद्रवती नगरी में थी । इसके नाम के लिए ‘मुरु’ पाठभेद प्राप्त है ।
मुर n. ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न होने के कारण, इसने समस्त देवों का ही नही, बल्कि साक्षात् श्रीविष्णु का भी पराजय किया । इससे घबरा कर, श्रीविष्णु ने रणभूमि से पलायन किया, एवं वह बद्रिकाश्रम की सिंहावती नामक गुँफा में योगमाया का आश्रय ले कर सो गया । किन्तु मुर उसका पीछ करता हुआ वहॉं भी पहुँच गया । पश्चात् श्रीविष्णु ने अपनी योगमाया से एक देवी का निर्माण किया, जिसके द्वारा मुर का वध हुआ । मुर का वध करनेवाले देवी पर श्रीविष्णु अत्यधिक प्रसन्न हुए, एवं उन्होंने उसे वर प्रदान किया, ‘आज से तुम्हारा नाम ‘एकादशी’ रहेगा, एवं समस्त पार्पो का नाश करने का सामर्थ्य तुम्हे प्राप्त होगा’
[पद्म.उ.३६.५०-८०] ।
मुर II. n. एक पंचमुखी राक्षस, जो नरकासुर का सेनापति था । इसे निम्नलिखित सात पुत्र थेः---ताम्र, अन्तरिक्ष, श्रवण, विभावसु, वसु, नभस्वत् एवं अरुण
[भा.१०.५९.३-१०] । इसने नरकासुर के प्राग्ज्योतिषपुर के राज्य के सीमा पर छः हजार पाश लगाये थे, जिनके किनारों पर छूरे लगाये थे । उन पाशों को इसके नाम से ‘मौरव’ पाश कहते थे । श्रीकृष्ण ने उन पाशों को अपने सुदर्शन चक्र से तोड कर, इसका एवं इसके सात पुत्रों का वध किया
[म.स.परि.१.२१.१००६] ।
मुर III. n. एक यवन राजा, जो जरासंध का मांडलिक था
[म.स.१३.१३] । इसकी कन्या का नाम मौर्वी का मकंटकटा था, जो घटोत्कच को विवाह में दी गयी थी (घटोत्कच देखिये) ।
मुर IV. n. एक राक्षस, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था । शिव की तपस्या कर, इसने उससे वर प्राप्त किया था कि, अपना हाथ यह जिसके हृदय पर रखेगा वह तत्काल मृत होगा । श्वेतद्वीप में इसका एवं श्रीकृष्ण का युद्ध हुआ, जिसमें इसक हाथ इसीके हृदय पर रखने के लिए कृष्ण ने इसे विवश किया, एवं इसका वध किया
[वामन.६०-६१] । इसका वध करने के कारण, कृष्णरुपधारी श्रीविष्णु को ‘मुरारि’ नाम, प्राप्त हुआ ।