असित n. मांधाता राजा के द्वारा पराभूत एक राजा
[म.शां२९.८१] ।
असित (काश्यप), देवल n. सूक्तद्रष्टा । इसे देवल काश्यप कहते हैं
[ऋ.९.५-२४] । यह कश्यप का पुत्र था । इसका गय
[अ.सं.१.१४.४] तथा जमदग्नि के साथ उल्लेख है
[अ.सं.६.१३७.१] । इसे असित देवल
[पं. ब्रा.१४.११.१८-१९] ;
[क. सं. .२२.२] , तथा असितो देवल कहते है
[म.स.४.८] ;
[म. शां.२२२,२६७] । इसकी स्त्री हिमालय की कन्या एकपर्णा । यह युधिष्ठिर के यज्ञ में ऋत्विज था
[भा.१०.७४.७] । जब युधिष्ठिर ने मयसभा में प्रवेश किया, तब अन्य ऋषिगणों के साथ यह उनके साथ था
[म. स. ४.८] । नारद जब युधिष्ठिर को ब्रह्मदेव की सभा का वर्णन बता रहे थे, तब यह वहॉं व्रतादि का अनुष्ठान कर उपस्थित था
[म.स.११.२२५] । श्रीकृष्ण तथा बलराम से मिलने के लिये, अनेक ऋषियों के साथ यह स्यमंतक क्षेत्र में गया था
[भा.१०.८४.३] । यह तथा श्रुतदेव ब्राह्मण कृष्ण के साथ, बहुलाश्व से मिलने के लिये, विदेह देश को गये थे
[भा.१०.८६.१८] । नारदादिकों के साथ यह पिंडारक क्षेत्र में भी गया था
[भा.१.१.११] । मुमुक्षु व्यक्ति ब्रह्मपद की प्राप्ति कैसी करे, इस विषय में जैगीषव्य
[म.शां.२२२] , तथा नारद के साथ
[म.शां.२६७] इसका संवाद हुआ था । आदित्यतीर्थपर यह गृहस्थाश्रम में रहता था, तथा अचल भक्तिभाव से इसने योगसंपादन किया था । एकबार जैगीषव्य ऋषि भिक्षुकवेष में इसके आश्रम में आये । तब इसने उत्तम प्रकार से उसका गौरव कर के, काफी वर्षो तक उसका पूजन किया । बहुत काल व्यतीत हो जाने पर भी जैगीपव्य एक शब्द भी नही बोलता, यह देख कर मन ही मन यह उसकी अवहेलना करने लगा । पश्चात् यह गगरी ले कर समुद्र गया । जैगीषव्य वहॉं पहले से ही आ कर बैठा हुआ था । उसे देख कर, इसे बडा ही आश्चर्य लगा । तदनंतर स्नान कर के यह आश्रम में लौट आया । आते ही जैगीषव्य पुनः आश्रम में बैठा हुआ इसे दिखा । तब जैगीषव्य के तप तथा योगाभ्यास का प्रभाव देख कर इसे बडा आश्चर्य हुआ । उस विषय में जिज्ञासा पूर्ण करने के लिये, यह आश्रम से अंतरिक्ष में उडा । वहॉं उसने देखा कि, कोई सिद्धपुरुष जैगीषव्य की पूजा कर रहे है । तब यह काफी घबराया गया । तदनंतर जैगीषव्य भिन्न भिन्न लोगों में आगे आगे जाने लगा । पुरे समय, इसने उनका पीछा किया । अन्त में, पतिव्रताओं के लोक में आ कर जैगीषव्य गुप्त हो गया । वहॉं एक सिद्ध के यहॉं पूछने पर पता चला कि, वह ब्रह्मपद पर गया है । इसलिये ब्रह्मलोक जाने के लिये इसने उँची उडान ली । किन्तु सामर्थ्य कम होने के कारण, यह नीचे गिर गया । अन्त में उस सिद्ध ने इसे वापस जाने के लिये कहा । तब जिस क्रम से यह ऊपर गया था, उसी क्रम से सब लोक उतर कर नीचे आया । जैगीषव्य को पहले ही आ कर आश्रम में बैठा हुआ इसने देखा । तब उसके योगसामर्थ्य से यह आश्चर्यचकित हो गया । नम्र हो कर, जैगीषव्य के पास ओक्षधर्म जानने की इच्छा इसने दर्शाई । उसके बाद, जैगीषव्य ने इसे योग का उपदेश दे कर संन्यासदीक्षादी उसेक इसको परमसिद्धि तथा श्रेष्ठयोग प्राप्त हुआ
[म.श४९] ; देवल देखिये । असित देवल तथा यह ये दोनों एक ही है । यह कश्यप तथा शांडिल्य का एक प्रवर भी है । इसने सत्यवती को विवाह के लिये मांगा था
[म.आ.९४.७३] । इसका पुत्र देवल
[ब्रह्मांड. ३.८.२९-३३] । यह कश्यपकुल का गोत्रकार
[मत्स्य.१९९.१९] ;
[लिंग. १.६३.५१.१] , तथा मंत्रकार था
[वायु.५९.१०३] ;
[मत्स्य. १४५.१०६-१०७] ;
[ब्रह्मांड. २.३२.११२-११३] ।
असित (काश्यप), देवल II. n. जनमेजय के सर्पसत्र का एक सदस्य
[म.आ.५३] ।
असित (देवल) n. असित काश्यप देखिये ।
असित (धान्वन) n. वेदकालीन राजा । असुरविद्या वेद इसका है । दस दिनों तक चलनेवाले परिप्लवाख्यान में इसका उल्लेख है
[सां.श्रौ. १६.२.२०] । इसको असित धान्व भी कहा है
[श.ब्रा. १३.४.३.११] ;
[आ. श्रौ. १०.७] ;
[पं. ब्रा.१४.११.१८.३९] ।
असित (वार्षगण) n. हरित काश्यप का शिष्य । इसका शिष्य जिव्हाघत् बाध्योग
[बृ. उ. ६.५.३ काण्व., ६.४.३३ माध्यं.] ।
असित II. n. (सू.इ.) भरतराजा का पुत्र । इसके शत्रु हैहय तालजंघ तथा शशबिंदु ने इसका पराभव कर के, इसे राज्य से बाहर भगा दिया । तब अपनी दोनों पत्नीयों के साथ, यह हिमालय पर्वत पर जा कर रहा । वहीं इसकी मृत्यु हो गई । मृत्यु के समय, इसकी दोनों पत्नीयॉं गर्भवती थीं । उन में से, एक ने सौत के गर्भ का नाश हो इस उद्देश से, अपनी सौत कालिंदी को सविष भोजन दिया । तब वह शोक करने लगी । परंतु च्यवन भार्गव मुनि के आशिर्वाद से, उसे सगर नामक सविष पुत्र हुआ
[वा.रा.बा ७०] ;
[वा.रा.अयो.११०] ।