लीला गान - आछो दधि दूँगी रे साँव...

’लीलागान’में भगवल्लीकी मनोमोहिनी मनको लुभाती है ।


आछो दधि दूँगी रे साँवरिया थोड़ी मुरली बजाय, दधि दूँगी ॥

ऐसी बजाय जैसी जमुना ऊपर बाजी रे, बहतो नीर तुरंग थम जाय ॥

ऐसी सुनाय जैसी माधोवनमें बाजी रे, चरती धेनु मगन हो जाय ॥

ऐसी बजाय जैसी वृन्दावनमें बाजी रे, संगकी सहेली मगन हो जाय ॥

‘चन्द्रसखी’ भज बालकृष्ण छबि, हरिके चरणमें चित्त लगाय ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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