आज अयोध्या की गलियोंमें घूमे जोगी मतवाला, ।
अलख निरंजन खड़ा पुकारे देखूँगा दशरथ लाला ॥ टेक ॥
शैली सिंगी लिये हाथमें, अरु डमरु त्रिशूल लिये,
छमक छमाछम नाचे जोगी, दरस की मन में चाह लिये,
पगके घुघरु छमछम बाजे कर में जपते हैं माला ॥१॥
अंग भभूत रमावे जोगी, बाघम्बर कटि में सोहे,
जटा जूट में गंग बिराजे, भक्त जनोंके मन मोहे,
मस्तक पर श्रीचन्द्र बिराजे गल में सर्पन की माला ॥२॥
राज द्वार पे खड़ा पुकारे, बोलत है मधुरी बानी,
अपने सुतको दिखा दे मैया, ये योगी मनमें ठानी,
लाख हटाओ पर ना मानूँ, देखूँगा तेरा लाला ॥३॥
मात कौशल्या द्वार पे आई, अपने सुत को गोद लिये,
अति विभोर हो शिव जोगी ने बाल रुप के दरस किये,
चले सुमिरत राम नाम को, कैलासी काशी वाला ॥४॥