लीला गान - होरी खेलत है गिरधारी ...

’लीलागान’में भगवल्लीकी मनोमोहिनी मनको लुभाती है ।


होरी खेलत है गिरधारी !

मुरली चंग बजत ढफ न्यारो, सँग जुवती ब्रजनाती ॥

चंदन केसर छिड़कत मोहन, अपने हाथ बिहारी ॥

भरि-भरि मूठ गुलाल लाल चहूँ, देत सबनपै डारी ॥

छैल छबीले नवल कान्ह सँग, स्यामा प्राणपियारी ॥

गावत चार धमार राग तहँ, दै दै कल करतारी ॥

फाग जु खेलत रसिक साँवरो, बाढयो रस ब्रज भारी ॥

मीरा कूँ प्रभु गिरधर मिलिया, मोहनलाल बिहारी ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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