झूले आप झुलावे मोहन, गावे राग मल्हार ॥२॥
सदा सजीली बागकी राधे, खिल गई केशर क्यार,
चम्पा चमेली खिली केतकी, भँवर करे गुँजार ॥३॥
दाराधा श्रीवृषभान दुलारी, प्यारी बंसी दीज्यो मोय ॥ टेर॥
या बंसी बिन चैन न पाऊँ, बंसी के बल गाय चराऊँ
या के बल गिरिराज उठाऊँ, बंसी की धुन तीन लोक में
सुरनर नाग समोय ॥१॥
कैसी बंसी श्याम तुम्हारी, हमने नेक ना नैन निहारी
तुम छलिया हम भोरी भारी, झूठो नाम लगावो रे लाला
वन में खोई होय ॥२॥
तुमने बंसी लई हमारी, तुम सब सुघड़, चतुर व्रज नारी
कैसे जानूँ भोरी भारी, तनिक दही के कारणै वाँ दिन
गारी दीनी मोय ॥३॥
चोरी करे खाय सो गारी, यहाँ को चेरी बसै तुम्हारी
आँख दिखावो पीरी- कारी, आधी रात भगे मथुरा ते
लाज न आवे तोय ॥४॥
भगतन के हित यह देह हमारी, तुम का जानो जाति गँवारी
बंसी तीन लोक ते न्यारी, सुर नर मुनि ब्रह्मादिक जाँको
पार न पायो कोय ॥५॥