यो धनुष बड़ो विकराल, रघुबर छोटो-सो ।
बड़ो कठिन पण पिता कियो, कोई रँच न कियो विचार ॥ रघु ॥
कमल जिसो तन राम रो, यो धनुष बजर सो जान ॥ रघु ॥
धनुष चढ़ो चाहे ना चढ़ो, म्हारो राम भँवर-भरतार ॥ रघु ॥
छोटो-छोटो मती कहो, यो पूरण ब्रह्म औतार ॥ रघु ॥
सूरज छोटो सो लगै, सब जगमें करे प्रकाश ॥ रघु ॥
रघुवर चाप चढ़ावसी, सखि ! इनमें फेर न सार ॥रघु ॥